दीपेंद्र श्रीवास्तव : राजनीतिक विश्लेषक
सोनम वांगचुक लद्दाख के जाने-माने पर्यावरणविद्, शिक्षाविद् और समाजसेवी हैं। वे “आइस स्तूप” जैसी अभिनव तकनीक के प्रणेता हैं, सौर ऊर्जा को जन-जन तक पहुँचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित हो चुके हैं, तथा शिक्षा सुधारों के लिए उनकी ख्याति सीमाओं से परे है। फ़िल्म 3 Idiots का पात्र “फुनसुख वांगडू” उन्हीं से प्रेरित माना जाता है।
पिछले दिनों लद्दाख को राज्य का दर्जा दिलाने और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की माँग को लेकर वे आंदोलनरत रहे। इसी क्रम में लद्दाख पुलिस ने उन्हें “राष्ट्रद्रोह” के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। आरोप यह है कि भाजपा कार्यालय में हुई आगजनी और उपद्रव से पूर्व उन्होंने भड़काऊ भाषण दिए थे। हालांकि, आगजनी की घटना के बाद उन्होंने स्वयं को आंदोलन से अलग कर लिया था।
यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि यदि उपद्रव की आशंका थी, तो खुफिया एजेंसियाँ पहले से सक्रिय क्यों नहीं हुईं। आलोचकों का मानना है कि सत्ता पक्ष के कई नेता भी समय-समय पर उत्तेजक भाषण देते रहे हैं, जिन्हें “व्यक्तिगत राय” कहकर नज़रअंदाज़ कर दिया गया। ऐसे में सोनम वांगचुक पर कठोर कार्रवाई करना और उन्हें राष्ट्रविरोधी ठहराना कई लोगों को अन्यायपूर्ण प्रतीत होता है।
यह भी उल्लेखनीय है कि समाजसेवा व आंदोलन की विरासत उन्हें अपने पिता सोनम वांगयाल से मिली। वांगयाल ने 1984 में लद्दाख को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिलाने हेतु बड़े आंदोलन और अनशन का नेतृत्व किया था। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वयं लद्दाख पहुँचकर उनसे मुलाकात की थी और जूस पिलाकर अनशन समाप्त कराया था।
आज का दौर अलग है। आंदोलनों को राजनीतिक चश्मे से देखा जाता है। ऐसे में यह सवाल नितांत प्रासंगिक है कि जिस व्यक्ति ने जीवनभर शिक्षा, पर्यावरण और हिमालयी पारिस्थितिकी की रक्षा के लिए अथक कार्य किया, उसे राष्ट्रप्रेमी माना जाए या राष्ट्रद्रोही? इसका अंतिम निर्णय न तो किसी एक सरकार का होगा, न ही किसी एक मुकदमे का — बल्कि समय और जनमानस ही इसका उत्तर देंगे।
नोट: इस आलेख में व्यक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं।