“जब दवा बनी जहरीली : बच्चों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल WHO अलर्ट में उजागर तीन दूषित सिरप — जिम्मेदार कौन?”

मामला: क्या मिला और किन दवाओं में खतरा दिखा?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हाल ही में एक चेतावनी जारी कर बताया कि तीन मौखिक तरल (सिरप) दवाओं के कुछ बैचों में खतरनाक मात्रा में डाइएथिलीन ग्लाइकोल (DEG) मिला है — एक औद्योगिक सॉल्वेंट जो मनुष्य के लिए विषैला है। इन तीन दवाओं के नाम हैं: COLDRIF (निर्माता: Sresan Pharmaceutical), Respifresh TR (निर्माता: Rednex Pharmaceuticals) और ReLife (निर्माता: Shape Pharma)। इस दूषण का संबंध कुछ विशिष्ट बैचों से है, जिन्हें WHO ने ‘substandard (contaminated)’ बताया है। WHO की अलर्ट रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि DEG बच्चों में तीव्र गुर्दे की क्षति और मृत्युकारी परिणाम दे सकता है।


मौतों का दौर और WHO की चेतावनी

मामला तभी रोशन हुआ जब मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा और आसपास के जिलों में अचानक बच्चे बीमार पड़ने लगे और कुछ की मौतें भी दर्ज हुईं। प्रारंभिक जाँच में इन्हीं तरह के लक्षण दिखाई दिए जो DEG के विषाक्त प्रभावों से मेल खाते हैं — उल्टी, पेट दर्द, मूत्र न आना और अगला चरण गुर्दे की विफलता। इन घटनाओं के बाद WHO को सूचित किया गया और उसने वैश्विक अलर्ट जारी कर अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरणों को सतर्क किया। WHO ने यह भी कहा कि भले ही अभी तक इन बैचों के औपचारिक तौर पर निर्यात का प्रमाण नहीं मिला हो, अनियमित और अवैध चैनलों से किसी भी देश में पहुँचने का जोखिम नकारा नहीं जा सकता।


तीनों सिरप — तकनीकी रूप से क्या था दोष और कितना अधिक विष मिला?

WHO के टेक्निकल नोट में बताया गया है कि संदिग्ध बैचों में डाइएथिलीन ग्लाइकोल के स्तर औषधीय मानक से कई गुना अधिक पाए गए — कुछ मामलों में यह स्वीकार्य सीमा से लगभग सैकड़ों गुना अधिक थे। DEG और कभी-कभी एथिलीन ग्लाइकोल (EG) का प्रयोग गलती से या घटिया कच्चे माल (जैसे सस्ता glycerin/propylene glycol न होने पर) के कारण होता है। सरल शब्दों में: जो तरल बनावट सामान्यतः ग्लिसरिन से आती है, उसकी जगह सस्ता औद्योगिक सॉल्वेंट दे दिया गया — और परिणाम घातक रहे। यह तकनीकी असावधानी नहीं, बल्कि जानलेवा लापरवाही है।


सरकार और स्वास्थ्य मंत्रालय — जिम्मेदारी और घोर चूकें

यहाँ सबसे बड़ा और तीखा प्रश्न यही है: क्या केवल निर्माता दोषी हैं, या सरकार और स्वास्थ्य मंत्रालय पर भी अपराध सिद्ध होता है? जवाब — हाँ, कम से कम मौलिक ज़िम्मेदारी पर सवाल उठना स्वाभाविक है। कारण स्पष्ट हैं: दवा विनियमन के तंत्र, गुणता-नियंत्रण (quality control) और कच्चे माल की सत्यापित आपूर्ति श्रृंखला का काम सरकार के नियामक निकायों द्वारा होना चाहिए। अगर बाजार में ऐसे जहरीले बैच खुलेआम पहुँच रहे हों, तो यह बताता है कि निगरानी तंत्र या तो अधूरा था या उसने चेतावनी संकेतों को अनदेखा किया। WHO अलर्ट के बाद CDSCO जैसी संस्थाओं ने त्वरित कार्रवाई की और संबंधित साइटों पर उत्पादन रोका गया — पर सवाल यह है कि यह कार्रवाई इससे पहले क्यों नहीं हुई जब बच्चों की मौतें हो रही थीं? क्या जाँच-प्रक्रियाओं में देरी ने और जानें लीं? WHO ने खुद अवैध आपूर्ति चैनलों पर सतर्क रहने का आग्रह किया — जो नियामकीय खालीपन की ओर संकेत है।


स्वास्थ्य मंत्रालय की निष्क्रियता पर कटाक्ष

सरकार के लिए यह किसी सामान्य तकनीकी गलती जैसी बात नहीं है जिसे दंड-प्राथमिकता में टाला जा सके। जब बच्चों की जानें जोखिम में हों, तो स्वास्थ्य मंत्रालय और राज्य नियंत्रक एजेंसियों का तत्काल, पारदर्शी और कठोर कदम ज़रूरी होता है — न कि तारीखें टालना और मुद्रीकृत बयानबाजी। अब तक जो कमी दिखी वह है: कच्चे माल (excipient) के स्रोतों की जाँच का अभाव; निर्माताओं पर नियमित, अनियोजित निरीक्षण की कमी; तथा ग्रामीण और अनियमित दुकानदारों-परचून विक्रेताओं की आपूर्ति चैनलों की छानबीन में ढिलाई। यह ढिलाई महज़ तकनीकी हैसियत से नहीं, यह जीवन और मौत का मसला है — और इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।


क्या सख्त कानूनी कार्रवाई अनिवार्य है?

यह समय कोमल बयानबाजी का नहीं, कड़ी कार्रवाई का है। दोषी कंपनियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे, लाइसेंस की निलंबन/रद्दीकरण, और दोष सिद्ध होने पर जेल— यह न्यूनतम प्रभावी कदम होने चाहिए। साथ ही, जिन अधिकारियों ने नियामकीय अनुगमन में लापरवाही दिखाई, उन्हें भी अनुशासनात्मक तथा आपराधिक उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए। सिर्फ़ मुआवजा या वापसी तक सीमित न रहें — अगर नियामकीय प्रणाली में भ्रष्टाचार या लापरवाही मिली तो नियामकीय सुधार और जेल तक की कार्रवाई सख्त नीति का हिस्सा होनी चाहिए। WHO की चेतावनी और बच्चों की मौतों का मेल इतना सीधा है कि इसे ‘दूसरी तरफ़ तारीख’ पर डालकर भूलना अपराध होगा।


बचाव और निवारण — जनता, डॉक्टर और नीति क्या करें?

फौरन कदम: संदिग्ध ब्रांड और बैच तुरंत बाजार से हटाएँ जाएँ; चिकित्सा जगत को सतर्क कर आवश्यक रोगियों की निगरानी करानी चाहिए; और प्रभावित परिवारों को मुफ्त स्वास्थ्य सहायता दी जानी चाहिए। नीति की दृष्टि से: कच्चे माल की स्रोत-प्रमाणीकरण प्रणाली अनिवार्य कर दें; हर फार्मास्युटिकल इकाई में रेंडम GC-MS परीक्षण (gas chromatography) अनिवार्य करें; और राज्य-स्तर पर फास्ट-ट्रैक इंस्पेक्शन टीम बनें। साथ ही, अनियमित बाजारों पर फोकस्ड सर्वे/रैपिड जाँचें शुरू कर दी जाएँ — क्योंकि WHO ने खासकर अवैध/अनियमित चैनलों की चेतावनी दी है। जनता के लिए संदेश स्पष्ट होना चाहिए: किसी भी संदिग्ध सिरप का उपयोग न करें और डॉक्टर की सलाह के बिना दवा न लें।


रोष, जवाबदेही और पुनर्स्थापना का समय

जब दवा ही भरोसेमंद नहीं रह जाए, तो समाज का सबसे मूल स्तम्भ — सार्वजनिक स्वास्थ्य — दरकने लगता है। यह सिर्फ़ निर्माता-कंपनियों का किडनैपिंग नहीं है; यह नियामक विफलता और नीति-निरपेक्षता का प्रतीक है। WHO की चेतावनी ने वैश्विक स्तर पर भारत की दवा सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाया है — और इसके जवाब केवल टेक्निकल रिपोर्टों से नहीं मिलेंगे, बल्कि कड़े कदम, पारदर्शिता और जवाबदेही से मिलेंगे। सरकार और स्वास्थ्य मंत्रालय को न सिर्फ़ क्षतिपूर्ति देनी चाहिए बल्कि यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य में किसी भी बच्चे की जान दवा-लापरवाही के कारण न जाए। आज रोष की घड़ी है; कल के लिए व्यवस्था बदलने का अवसर है — इसे गंवाया नहीं जाना चाहिए।

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