बिहार चुनाव 2025 : नगद, प्रण और बम्पर स्कीमों की घोषणाओं की बहार — वाह रे बिहार

दीपेंद्र श्रीवास्तव
(राजनीतिक विश्लेषक
)

बिहार में चुनाव घोषणा के साथ ही सत्ता पक्ष और विपक्षी दलों द्वारा ऐन-केन-प्रकारेण घोषणाओं और रेवड़ी बाँटने की बहार आ गई है। प्रदेश की 243 विधानसभा सीटों पर दो चरणों में चुनाव होना है — पहला चरण 6 नवंबर और दूसरा चरण 11 नवंबर 2025 को। मतगणना 14 नवंबर 2025 को होगी। यह संयोग भी रोचक है कि उसी दिन पंडित नेहरू जी की जयंती और बाल दिवस भी मनाया जाएगा।

चुनावी वर्ष और समय को देखते हुए सत्ताधारी एनडीए सरकार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने आचार संहिता लागू होने से पहले ही कई मनमोहक और लुभावनी योजनाएँ तथा वादे कर दिए। संभवतः उन्होंने यह भाँप लिया कि केवल सड़क, पुल, बिजली, पानी और नहर के विकास से अब मतदाताओं को प्रभावित नहीं किया जा सकता। शायद अपने राजनीतिक जीवन के अंतिम बड़े दाँव में उन्होंने ऐसी रणनीति अपनाई कि विपक्ष के साथ-साथ मतदाता भी चकित रह गए।

बिहार में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों की अपेक्षा हमेशा अधिक रहा है। उदाहरणस्वरूप, वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में महिलाओं का मतदान प्रतिशत 59.39% जबकि पुरुषों का 53.28% रहा। इसी प्रकार, 2020 के विधानसभा चुनाव में महिलाओं का मतदान 59.7% और पुरुषों का 54.6% रहा। इस प्रवृत्ति को देखते हुए मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने चुनाव घोषणा से कुछ ही दिन पहले महिलाओं को “रोजगार योजना” के तहत 10,000 रुपये की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की, जिससे विपक्षी दलों में हलचल मच गई।

इसके अलावा चुनावी वर्ष में कई बम्पर स्कीमें भी लागू की गईं — जैसे 125 यूनिट मुफ्त बिजली, मिड-डे-मील कर्मियों, रसोइयों, नाइट गार्डों, फिजिकल टीचरों का मानदेय दोगुना करना, आंगनबाड़ी सेविकाओं का मानदेय ₹7,000 से बढ़ाकर ₹9,000 करना, छात्रवृत्ति राशि दोगुनी करना, बेरोजगार स्नातकों (वर्ष 2020–25) को ₹1,000 प्रतिमाह भत्ता देना, पत्रकारों की पेंशन ₹6,000 से बढ़ाकर ₹9,000 करना, तथा बुजुर्गों, विधवाओं और दिव्यांगों की पेंशन ₹400 से बढ़ाकर ₹1,100 प्रतिमाह करना इत्यादि। इन सबमें समाज के लगभग सभी वर्गों को लुभाने की कोशिश की गई।

डबल इंजन सरकार और “सुशासन राज” के 20 वर्षों के शासन के बावजूद जब विकास और कार्य के नाम पर जनता के बीच आकर्षण नहीं बन पाया, तो नगद राशि और बम्पर स्कीमों के बल पर पुनः सत्ता हासिल करने की लालसा इन घोषणाओं से स्पष्ट झलकती है। यह विडंबना है कि श्री नीतीश कुमार स्वयं कभी “रेवड़ी संस्कृति” के विरोधी रहे हैं और विधानसभा में इसकी आलोचना भी कर चुके हैं, लेकिन अब वही मार्ग अपनाते दिखाई दे रहे हैं।

फिलहाल एनडीए गठबंधन में मुख्यमंत्री पद को लेकर भी अनिश्चितता बनी हुई है। बिहार में मतदाताओं की कुल संख्या लगभग 7.43 करोड़ है (30 सितंबर 2025 की अंतिम निर्वाचक नामावली के अनुसार)। इसमें पुरुष 3.92 करोड़ (52.8%) और महिलाएँ 3.50 करोड़ (47.1%) हैं। इनमे लगभग 14 लाख नए मतदाता भी शामिल हैं।

महिला मतदाताओं के झुकाव को ध्यान में रखते हुए “डबल इंजन सरकार” ने मध्य प्रदेश, हरियाणा और महाराष्ट्र में मिली सफलता को देखते हुए बिहार में “महिला रोजगार योजना” 26 सितंबर 2025 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रारंभ की। इसके तहत 75 लाख महिलाओं को ₹7,500 करोड़ की पहली किस्त दी गई। तत्पश्चात 3 अक्टूबर और 6 अक्टूबर को क्रमशः 25 लाख और 21 लाख महिलाओं को ₹2,500 करोड़ और ₹2,100 करोड़ की राशि डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) के माध्यम से हस्तांतरित की गई। कुल मिलाकर अब तक 1 करोड़ से अधिक महिलाओं को इसका लाभ मिल चुका है। चुनावो के दौरान भी ये धनराशि बांटी जा रही है चुनाव आयोग मूकदर्शक बना है ।

इस योजना का लाभ 18 से 60 वर्ष की आयु की उन महिलाओं (अविवाहित और अनाथ सहित) को मिल रहा है जिनके परिवार में कोई आयकरदाता या सरकारी नौकरी वाला सदस्य नहीं है। पहली किस्त ₹10,000 की है, और आगे चलकर ₹2 लाख तक की अतिरिक्त सहायता दी जा सकती है — कुल ₹2.10 लाख तक। यह राशि सिलाई, बुनाई, पशुपालन, खेती या छोटे व्यवसाय के लिए उपयोग हेतु दी जा रही है। योजना को महिला सशक्तिकरण से जोड़कर प्रस्तुत किया गया, परंतु प्रश्न यह भी उठता है कि यदि यह योजना वास्तव में सशक्तिकरण के लिए है, तो इसे केवल बिहार में ही क्यों, पूरे देश में क्यों नहीं लागू किया गया?

उधर, महागठबंधन ने भी तेजस्वी यादव के नेतृत्व में “25 प्रण” लेकर बम्पर स्कीमों की घोषणा कर दी — जैसे प्रत्येक परिवार में एक सरकारी नौकरी देने, हर घर को 200 यूनिट मुफ्त बिजली, “माई बहिन मान” योजना के तहत महिलाओं को ₹2,500 प्रतिमाह देने, जीविका दीदियों को स्थायी कर्मचारी का दर्जा देने, पलायन मुक्त राज्य बनाने, युवाओं को बेरोजगारी भत्ता, पुरानी पेंशन योजना बहाल करने, शिक्षा का विस्तार, प्रतियोगी परीक्षाओं में फीस माफी और परीक्षा केंद्र तक मुफ्त यात्रा जैसी कई घोषणाएँ शामिल हैं। इन घोषणाओं में रोजगार, महिला कल्याण, शिक्षा, उद्योग और सामाजिक न्याय को वरीयता दी गई है। चुनावी मंचों पर सरकारी नौकरी के वादे को लेकर तेजस्वी यादव सुशासन सरकार पर लगातार हमलावर हैं।

31 अक्टूबर 2025 को एनडीए ने अपना “संकल्प पत्र” जारी किया, जिसमें बिहार के विकास, रोजगार, महिला सशक्तिकरण, किसान कल्याण और बुनियादी ढाँचे को प्रमुखता दी गई। यह संकल्प पत्र 25 प्रमुख बिंदुओं पर आधारित है — जैसे 1 करोड़ सरकारी नौकरियाँ और रोजगार अवसर, 1 करोड़ “लाखपति दीदियाँ” (महिलाओं को उद्यमी बनाने हेतु), “करपूरी ठाकुर किसान सम्मान निधि” से प्रति वर्ष ₹3,000 किसानों को, कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर में ₹1 लाख करोड़ निवेश, और 5 वर्षों में बाढ़-मुक्त बिहार का लक्ष्य। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में “KG से PG तक मुफ्त गुणवत्तापूर्ण शिक्षा” तथा हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज की स्थापना जैसी घोषणाएँ की गई हैं। हालाँकि, 1 करोड़ सरकारी नौकरियों के वादे पर जनता को स्वयं विचार करना होगा, क्योंकि केंद्र में 11 वर्षों से सत्ता में रही एनडीए सरकार ने पहले भी हर वर्ष 2 करोड़ नौकरियाँ देने का वादा किया था, जो आज तक पूरा नहीं हुआ।

एनडीए हो या इंडिया गठबंधन, दोनों ही ओर से सत्ता पाने के लिए बम्पर स्कीमों की बौछार कर दी गई है। सत्ता पक्ष ने तो कई योजनाओं का क्रियान्वयन भी शुरू कर दिया है। मगर बेरोज़गारी, पलायन, महँगाई, भ्रष्टाचार, अपराध, शिक्षा और विकास जैसे मुद्दों पर ठोस कदम अभी तक स्पष्ट नहीं हैं। कर्ज़ में डूबे बिहार में खजाना लुटाकर चुनाव जीतने की रणनीति बनाई जा रही है — और टैक्स देने वाला वर्ग बस दर्शक बना है।

एक ओर भाजपा, जेडीयू और क्षेत्रीय दलों का एनडीए गठबंधन है, तो दूसरी ओर कांग्रेस, राजद और अन्य दलों का “इंडिया गठबंधन”। चुनावी मंचों पर वादों और घोषणाओं की होड़ लगी है। एनडीए के नेता आज भी 20 साल पहले पटना हाईकोर्ट द्वारा लालू-राबड़ी शासन को “जंगलराज” कहे जाने की टिप्पणी को बार-बार दोहरा रहे हैं। लेकिन मौजूदा समय में सत्ता पक्ष के उम्मीदवारों और समर्थकों पर हो रहे हमलों और हत्याओं पर सरकार का मौन भी उतना ही चिंताजनक है। डबल इंजन सरकार में यह कहना कि बिहार में अपराध पर पूरी तरह लगाम लग गई है, शायद उचित नहीं होगा — क्योंकि अपराधी अब भी बेखौफ अपराध कर रहे हैं।

बिहार का यह चुनाव बेहद दिलचस्प है। एक ओर एनडीए महिलाओं को नगद राशि, पेंशन वृद्धि और 125 यूनिट मुफ्त बिजली जैसी योजनाओं से आकर्षित कर रहा है, तो दूसरी ओर बेरोजगार युवा तेजस्वी यादव के “25 प्रण” में अपनी उम्मीदें देख रहे हैं — जैसे हर घर एक सरकारी नौकरी, महिलाओं को ₹2,500 प्रतिमाह, और पुरानी पेंशन बहाली जैसी योजनाएँ।

एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे बड़े नेता मैदान में हैं, जबकि इंडिया गठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की जोड़ी मंचों पर जोश और उम्मीद का माहौल बना रही है। तेजस्वी यादव का उत्साह और युवा ऊर्जा स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है।

इस चुनाव में जन सुराज पार्टी के प्रमुख प्रशांत किशोर (पीके) भी सक्रिय हैं। हालाँकि वे स्वयं चुनाव नहीं लड़ रहे, पर सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं। 2020 के चुनाव में एनडीए को 37.26% वोट के साथ 125 सीटें मिली थीं, जबकि महागठबंधन को 37.23% वोट के साथ 110 सीटें — यानी मात्र 0.03% (करीब 12,270 वोट) के अंतर से सत्ता एनडीए के पास आई। 2025 के रुझान भी उसी तरह कांटे के मुकाबले वाले हैं। पीके की जन सुराज पार्टी और ओवैसी की पार्टी भी समीकरण बिगाड़ने में भूमिका निभा सकती हैं।

चुनाव के मौसम में वादों की बरसात होना सामान्य बात है — कोई मुफ्त बिजली दे रहा है, कोई नगद सहायता। परंतु प्रश्न यह है कि क्या यह सच में कल्याणकारी है या फिर राजनीति का आकर्षण? “फ्री योजनाएँ” समाज के पिछड़े और वंचित वर्गों के लिए आवश्यक हैं, पर जब यही योजनाएँ “वोट पाने का हथियार” बन जाएँ, तो ये “रेवड़ी संस्कृति” में बदल जाती हैं। इससे राज्य की अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ता है, विकास रुक जाता है, और जनता निर्भर बनती जाती है। रेवड़ी संस्कृति का सबसे बड़ा खतरा यह है कि यह मतदाताओं की सोच को सीमित कर देती है — वे नीति, शिक्षा, रोजगार या स्वास्थ्य पर नहीं, बल्कि तात्कालिक लाभ पर वोट देने लगते हैं। लोकतंत्र में यह प्रवृत्ति खतरनाक है, क्योंकि इससे जवाबदेही की जगह तुष्टीकरण हावी हो जाता है। रेवड़ी बाँटकर वोट लेना मतदान को प्रभावित करने का अनैतिक तरीका माना जा सकता है।

अब यह बिहार की जनता को तय करना है कि वे फ्री योजनाओं और बम्पर स्कीमों के आकर्षण के साथ जाएँगी या बेरोज़गारी, पलायन, अपराध, शिक्षा और विकास जैसे मूल मुद्दों पर आधारित वादों को प्राथमिकता देंगी।इस चुनाव में न केवल बिहारवासियों, बल्कि पूरे देश की निगाहें टिकी हैं, क्योंकि इसका परिणाम एक प्रकार से राष्ट्रीय रुझान (रेज़ोनेंट) को दिशा देगा। संयोग यह भी है कि मतगणना का दिन 14 नवंबर — पंडित जवाहरलाल नेहरू जी का जन्मदिन और बाल दिवस — है, जब देश के बच्चों का भविष्य प्रतीकात्मक रूप से तय होता दिखाई देगा। जिस भी दल की सरकार बने, उम्मीद यही है कि वह बिहार की उन्नति और जनता की आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए कार्य करेगी।

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