केशव प्रसाद मौर्य—उपमुख्यमंत्री, स्टार कैंपेनर या भविष्य का बड़ा चेहरा? BJP के असली इरादों की पड़ताल

✍️ लेखक: विजय श्रीवास्तव
(स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक)

UP के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का इन दिनों राजनीतिक कद जिस रफ्तार से बढ़ रहा है, वह साधारण घटना नहीं मानी जा रही। बिहार चुनाव में उनकी केंद्रीय भूमिका, ओबीसी समाज के बड़े चेहरे के रूप में उनकी आक्रामक प्रस्तुति, और चुनाव बाद पार्टी द्वारा उन्हें दी गई अहम जिम्मेदारियां—ये संकेत करती हैं कि BJP कुछ बहुत बड़ा सोच रही है। जिस तरह उन्हें लगातार बिहार, मध्य प्रदेश से लेकर देश के कई प्रदेशों में चुनावी मैदानों में उतारा जा रहा है, उसे महज़ ‘संगठनात्मक जिम्मेदारी’ कहना राजनीतिक भोलेपन जैसा होगा। ऐसा लगता है कि पार्टी न केवल उन्हें तराश रही है, बल्कि एक राष्ट्रीय स्तर का OBC-पावर सेंटर भी तैयार कर रही है।


BJP की दोहरी रणनीति – OBC + युवा चेहरा। क्या अखिलेश के PDA फार्मूले का जवाब तैयार है?

UP में 2027 का चुनाव अभी दूर है, लेकिन बीजेपी ने अभी से अपनी जमीन मजबूत करने की तैयारी शुरू कर दी है। सबसे बड़ा कारण अखिलेश यादव का PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) फार्मूला है, जिसने सपा को नया नैरेटिव दिया है। उधर कांग्रेस भी उत्तर प्रदेश में नई ऊर्जा के साथ उभर रही है, और बसपा भी पूरी तरह खेल से बाहर नहीं हुई है। ऐसे में BJP को एक ऐसा चेहरा चाहिए जो तीन मोर्चों पर प्रभावी हो:

  • ओबीसी समुदाय में गहरी पकड़
  • युवा चेहरे की ऊर्जा व आकर्षण
  • योगी मॉडल से अलग एक सॉफ्ट-बट-फाइटर छवि

यह तीनों गुण केशव प्रसाद मौर्य के पास मौजूद हैं।
इसीलिए राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि मौर्य का बढ़ता कद संयोग नहीं, रणनीति है।


क्या ये 2027 का ‘ट्रायल रन’ है? UP में मौर्य को नया केंद्र बनाने की तैयारी

केशव प्रसाद मौर्य को बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में लगातार जिम्मेदारियां देकर BJP एक चीज़ साफ़ कर रही है —वह उन्हें अखिल भारतीय स्तर पर स्वीकार्य चेहरा बना रही है। ये बिल्कुल वैसा ही मॉडल है जैसा कभी 2013 में नरेंद्र मोदी को लेकर अपनाया गया था—“राज्यों में भेजो, दिखाओ, चमकाओ और फिर बड़ा दांव खेलो।” 2027 के यूपी चुनाव के लिए क्या यही पॉलिटिकल रिसर्च चल रही है? क्या BJP यह देखना चाहती है कि मौर्य अलग-अलग राज्यों में कैसा प्रदर्शन देते हैं, और जनता उन्हें किस तरह स्वीकार करती है? अगर हाँ, तो 2027 का खेल अभी से शुरू हो चुका है—बिना घोषणा के, लेकिन बहुत तीखे इशारों के साथ।


क्या योगी आदित्यनाथ को साइडलाइन करने की तैयारी? इशारों में राजनीति भी चल रही है

सबसे बड़ा सवाल यही है—क्या बीजेपी योगी आदित्यनाथ के विकल्प की तलाश में है? योगी पिछले आठ वर्षों में अपनी छवि को राज्य से राष्ट्रीय स्तर तक ले गए हैं। मजबूत प्रशासक, सख्त चेहरा, हिंदुत्व की मुख्यधारा… लेकिन BJP का इतिहास बताता है कि पार्टी कभी एक ही व्यक्ति पर निर्भर नहीं रहती। मौर्य को बढ़ाना, लगातार मंच देना, उन्हें यूपी के बाहर पहचान दिलाना—ये कदम कई तरह के राजनीतिक संकेत देते हैं:

  • पार्टी चाहती है कि यूपी में केवल “एक ही ध्रुव” न रहे।
  • योगी की बढ़ती लोकप्रियता का “संतुलन” भी आवश्यक है।
  • भविष्य में एक विकल्प तैयार रखना BJP की पुरानी पॉलिसी रही है।

यही वजह है कि मौर्य को धीरे-धीरे समानांतर राजनीतिक कद दिया जा रहा है।


बिहार मॉडल की तर्ज पर प्रयोग—केशव को “लॉन्ग टर्म फेस” बनाने की तैयारी?

बिहार में भाजपा का प्रयोग सब देख चुके हैं— कक्षा 10 पास विवादों के बावजूद बीजेपी ने अपने युवा उपमुख्यमंत्री को प्रमोट किया, उन्हें गृहमंत्री का विभाग तक सौंप दिया और संदेश दिया कि “भविष्य का कमांडर यही है।” उसी तर्ज पर UP में भी BJP एक दीर्घकालिक चेहरा तैयार करना चाहती है—ऐसा चेहरा जो अगले 20–25 वर्षों तक राजनीति में टिक सके। योगी आदित्यनाथ का ग्राफ भी मजबूत है, लेकिन BJP ऐसे नेता चाहती है जिनकी जातीय पकड़ + संगठनात्मक स्वीकार्यता + लंबी राजनीतिक आयु तीनों में संतुलन हो। मौर्य के पास यही तीनों खूबियाँ मौजूद हैं। ओबीसी समाज में मजबूत पकड़ तो है ही, वहीं वे योगी की तरह “एक ध्रुवीय छवि” नहीं रखते, जो संगठन को अधिक सहज लगता है।


मौर्य की ‘ओबीसी कार्ड पावर’—सपा और कांग्रेस के लिए चुनौती

ओबीसी राजनीति के बिना UP का चुनाव जीतना किसी भी पार्टी के लिए असंभव है। सपा का PDA फ़ॉर्मूला इसी समुदाय को केंद्र में रखकर बनाया गया है। कांग्रेस भी अब ओबीसी को लेकर आक्रामक है। BJP की सबसे बड़ी चिंता यही है कि अगर यह वोट बैंक खिसक गया तो सत्ता टिकाना मुश्किल हो जाएगा।

केशव प्रसाद मौर्य ऐसे नेता हैं जो—

  • पिछड़े वर्ग में भावनात्मक जुड़ाव रखते हैं
  • हिंदुत्व और विकास दोनों मॉडल से सामंजस्य बनाए रखते हैं
  • विपक्ष के नैरेटिव को तोड़ने के लिए BJP को “मैचिंग OBC चेहरा” उपलब्ध कराते हैं

इसलिए उन्हें आगे बढ़ाना केवल व्यक्ति-प्रमोशन नहीं, बल्कि सम्पूर्ण सामाजिक समीकरण की पुनर्संरचना है।


क्या BJP की नई कहानी की शुरुआत हो चुकी है? राजनीतिक संदेश बहुत साफ़ हैं

इन संकेतों, नियुक्तियों, दौरा-राजनीति और रणनीतिक तैनाती के बाद अब प्रश्न यह नहीं है कि— “क्या BJP केशव प्रसाद मौर्य को बड़ा बना रही है?” बल्कि सवाल यह है—“कितना बड़ा?”

क्या वे उपमुख्यमंत्री से आगे मुख्यमंत्री बनेंगे?
क्या 2027 BJP के लिए ‘नया अध्याय’ होगा?
क्या योगी-मौर्य समीकरण को बदलने की तैयारी चल रही है?
क्या यह 2027 का ट्रायल है या 2032 का मास्टर प्लान?

सभी सवालों का एक ही निष्कर्ष है—
केशव प्रसाद मौर्य पर BJP का भरोसा बढ़ रहा है, और यह भरोसा किसी बड़े राजनीतिक तूफ़ान से पहले की शांति जैसा है। राजनीति में इशारे ही काफी होते हैं, और इस समय सारे इशारे मौर्य की ओर इशारा कर रहे हैं।

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