धर्मेन्द्र : एक युग का अंत — वह मसीहा जो हमेशा जीतता रहा, लेकिन काल से हार गया

✍️ लेखक: विजय श्रीवास्तव
(स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक)

पहलवानी से परदे के ही-मैन तक; संघर्ष, सफलता, परिवार और एक जिन्दादिल इंसान की भावुक करने वाली कहानी

धर्मेन्द्र के निधन की खबर ने पूरे देश को भावुक कर दिया। धर्मेन्द्र के निधन ने बॉलीवुड-दुनिया में एक युग का अंत कर दिया है। वे सिर्फ एक अभिनेता नहीं थे — वे वह मसीहा थे जिनकी मौजूदगी ने कई पीढ़ियों को हिम्मत और प्रेरणा दी। आज हम उनकी ज़िन्दगी की उन कहानियों को फिर से याद करते हैं, जो उनकी असाधारण यात्रा की झिलमिलाती यादें बनकर हमारे दिलों में जिंदा रहेंगी। भारतीय सिनेमा की उस पीढ़ी का सूरज डूब गया, जिसने स्क्रीन पर सिर्फ अभिनय नहीं किया, बल्कि जिंदगी का असली स्वाद दर्शकों तक पहुँचाया। धर्मेन्द्र सिर्फ एक अभिनेता नहीं थे—वे रोमांस की गर्माहट, एक्शन की जिजीविषा और इंसानियत की सादगी का पूरा संसार थे। आज उनका जाना ऐसा लगता है मानो परिवार का कोई अपना सदस्य हमसे छिन गया हो, और इस शून्य को भर पाना लगभग असंभव है।

मिट्टी की खुशबू वाला बच्चा

8 दिसंबर 1935 को पंजाब के साधारण परिवार में जन्मे धर्मेन्द्र बचपन से ही जमीन से जुड़े, मेहनती और जोश से भरे थे। उनके पिता स्कूल शिक्षक थे, और घर में अनुशासन व संस्कारों की गहरी धारा बहती थी। खेतों में दौड़ते-भागते, मिट्टी से खेलते और गाँव की हवाओं में पनपते इस बच्चे को किसी ने शायद तब नहीं सोचा था कि यही लड़का आगे चलकर भारतीय सिनेमा का “ही-मैन” बनेगा।

पहलवान से अभिनेता बनने तक का संघर्ष

युवा धर्मेन्द्र की पहली पहचान पहलवानी रही। उनकी कसरती काया, अनुशासन और जीत का जुनून ही उनकी असली ताकत बना। लेकिन दिल के एक कोने में अभिनय का सपना जाग उठा। 1958 में उन्होंने फिल्मफेयर टैलेंट हंट जीता और मुंबई की ओर सफर शुरू किया। यह सफर बिल्कुल आसान नहीं था—अनगिनत परीक्षाएँ, स्ट्रगल, छोटे रोल, भूख-प्यास और उम्मीदों के सहारे जीते दिन। 1960 में दिल भी तेरा हम भी तेरे उनकी पहली फिल्म बनी और फिर वह सपना धीरे-धीरे हकीकत बनने लगा।

सफलता की पहली सीढ़ियाँ

1960 का दशक धर्मेन्द्र के लिए उभरने का समय था। अनपढ़, बंदिनी, आये मिलन की बेला, फूल और पत्थर जैसी फिल्मों ने उन्हें स्टारडम की दहलीज पर ला खड़ा किया। फूल और पत्थर में उनके दमदार किरदार ने दर्शकों को नया नायक दिया—जो ताकतवर भी था, संवेदनशील भी। यह वही दौर था जब लोग समझने लगे कि हिंदी सिनेमा को एक ऐसा चेहरा मिल चुका है, जो आने वाले वर्षों में इंडस्ट्री को नई दिशा देगा।

शोले के वीरू से लेकर चुपके-चुपके के प्रोफेसर तक

1970 का दशक धर्मेन्द्र की सफलता का चरम था। मेरा गाँव मेरा देश, सीता और गीता, यादों की बारात ने उनकी लोकप्रियता को आसमान तक पहुँचा दिया। लेकिन 1975 में शोले आई—और “वीरू” अमर हो गया। धीरे-धीरे उनकी काबिलियत, उनका करिश्मा और उनकी मेहनत रंग लाने लगी। 1960 के दशक में उन्होंने अनपढ़, बंदिनी, आये मिलन की बेला, फूल और पत्थर जैसी फिल्में दीं, जिनमें उन्होंने रोमांस, कॉमेडी और ड्रामा की अपनी बहुमुखी प्रतिभा साबित की। विशेष रूप से फूल और पत्थर जैसी फिल्मों ने उन्हें एक्शन-हीरो की छवि दी और दर्शकों में उनकी लोकप्रियता को नई उड़ान दी। 1970 के दशक में धर्मेन्द्र अपने चरम पर पहुँचे। उनकी कुछ सबसे यादगार और सफलतम फिल्मों में मेरा गाँव मेरा देश (1971), सीता और गीता (1972), यादों की बारात (1973), चुपके चुपके (1975) शामिल हैं। लेकिन असली ब्रम्हास्त्र उनकी पहचान बना — शोले (1975)। इसमें उन्होंने “वीरू” का किरदार निभाया, और यह भूमिका आज भी हर दिल में ताज़ा है। उनकी कॉमिक टाइमिंग, उनकी मासूमियत और उनकी जोशीली शख्सियत ने उन्हें लोगों के दिलों में स्थायी जगह दी। उसी दशक में चुपके चुपके जैसी फिल्मों ने बताया कि धर्मेन्द्र सिर्फ एक्शन ही नहीं, बल्कि कॉमेडी के भी बादशाह हैं।

परिवार : दो शादियाँ और छह बच्चे

धर्मेन्द्र की निजी ज़िन्दगी भी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं थी। उनकी पहली शादी प्रकाश कौर से हुई, जिनसे उन्हें चार बच्चे—सनी, बॉबी, अजीता और विजेता—मिले। आगे चलकर फिल्मों में काम करते हुए उनकी मुलाकात हेमा मालिनी से हुई और दोनों ने विवाह कर लिया। हेमा मालिनी से उनके दो बेटियाँ—ईशा और अहाना—हैं। बड़ा परिवार, रिश्तों की उलझनें, और मशहूर हस्ती होने के बावजूद धर्मेन्द्र अपने सभी बच्चों के बेहद करीब रहे। उनका दिल सचमुच उतना ही बड़ा था जितना पर्दे पर दिखता था। पर्सनल लाइफ में धर्मेन्द्र एक बहुत ही जिंदादिल, दिलदार और सरल इंसान थे। यह कहना गलत न होगा कि उनका परिवार ही उनकी दूसरी पहचान थी — पिता, पति और दोस्त, सब कुछ एक ही इंसान में।

जिंदादिली उनका असली परिचय

धर्मेन्द्र की पूरी शख्सियत ज़िन्दादिली का दूसरा नाम थी। वे हँसमुख, दिलदार और बेहद सरल इंसान थे। सफलता के शिखर पर पहुँचकर भी उनमें कभी घमंड नहीं आया। उम्र के आखिरी वर्षों तक वे जीवन, प्रेम और परिवार के प्रति उसी उत्साह से भरे रहे जिससे उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की थी। धर्मेन्द्र की ज़िन्दादिली और उनका सरल स्वभाव, उनकी सफलता जितनी विशाल थी, उतनी ही गहरी उनकी आत्मा। उन्होंने सादगी के साथ एक विशाल फार्महाउस बनाया, जहां वे अक्सर समय बिताते थे। वे हमेशा कहते थे कि उन्हें मिट्टी, खेतों, खुली हवा और चुप-चाप जीवन की शांति बहुत प्रिय थी। उनकी यह सहजता, उनकी जमीन से जुड़ी सोच ही उन्हें दर्शकों के दिलों के इतना करीब ले आई। उनके अभिनय और योगदान को कई पुरस्कारों और सम्मान ने भी पहचान दी। उन्हें 2012 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया, जो भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है। इसके अलावा, उन्होंने फ़िल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड भी प्राप्त किया था। उनकी छाप सिर्फ पर्दे पर नहीं, बल्कि इंडस्ट्री और जनता के दिलों पर स्थायी रही।

समय के आगे हार, लेकिन दिलों में अमर

आज, जब हम धर्मेन्द्र के इस दुनिया से जाने की खबर सुनते हैं, हम एक युग के अंत की गवाही दे रहे हैं। हम उस “ही-मैन” को याद कर रहे हैं, जिसने हर रोल में जीत हासिल की, लेकिन उम्र और समय की लड़ाई में आज हार गया। उनकी मुस्कान, उनकी शख्सियत, उनकी फिल्मों का जादू — यह सब यादों की एक अमिट किताब बनकर रह जाएगा। उनका जाना सिर्फ एक अभिनेता का जाना नहीं है, यह उस भरोसे, उस इंसानियत, उस प्यार और उस मसीहा का जाना है, जिसे हम सिनेमा के पर्दे पर हमेशा एक नायक की तरह देखते रहे। धर्मेन्द्र जी, आप जहां भी हों, आपको हमारी सलामत यादें और हमारी भावनाओं की दुआएँ हमेशा आपके साथ रहेंगी। इस युग के अंत के बीच, आपका चेहरा हमेशा दिलों में ज़िंदा रहेगा।

आज धर्मेन्द्र हमें छोड़कर चले गए हैं, लेकिन उनके जाने से जो खामोशी पैदा हुई है, वह सिर्फ एक अभिनेता की नहीं, बल्कि एक भावना की कमी है। वह वह नायक थे जो कभी हारते नहीं दिखाई दिए—लेकिन समय से शायद कोई नहीं जीत पाता। फिर भी, उनकी हँसी, उनका जोश, उनके डायलॉग, उनका वीरू, उनका धरम—सब कुछ आज भी उतना ही जिंदा है। धर्मेन्द्र सिर्फ इतिहास नहीं, भारतीय सिनेमा की धड़कन हैं। और धड़कनें कभी मरती नहीं।

धर्मेन्द्र जी, आप जहां भी हों, आपको हमारी सलामत यादें और हमारी भावनाओं की दुआएँ हमेशा आपके साथ रहेंगी। इस युग के अंत के बीच, आपका चेहरा हमेशा दिलों में ज़िंदा रहेगा।

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