बिहार विधानसभा चुनाव 2025 : त्रिकोणीय जंग

बिहार की राजनीति का बदलता परिदृश्य

बिहार की राजनीति हमेशा से जटिल समीकरणों पर आधारित रही है। यहाँ सत्ता की लड़ाई केवल दलों के बीच नहीं, बल्कि जाति, वर्ग और क्षेत्रीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती है। 2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के बीच कड़ी टक्कर हुई थी। राजद सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई, लेकिन सत्ता एनडीए के हाथ में रही। अब 2025 के चुनाव में तस्वीर बदलती दिखाई देती है। इस बार केवल एनडीए बनाम इंडिया गठबंधन की सीधी लड़ाई नहीं रहेगी, बल्कि प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने तीसरे विकल्प के रूप में खुद को स्थापित किया है। उनके उभार ने पारंपरिक समीकरणों को हिला कर रख दिया है। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में वे चर्चा में हैं, और युवा वर्ग तथा शिक्षित मतदाता उनके संदेश के प्रति संवेदनशील हैं।


जन सुराज का बढ़ता प्रभाव

प्रशांत किशोर ने अपने राजनीतिक करियर में पहले रणनीतिकार के रूप में पहचान बनाई, लेकिन अब वे चुनावी मैदान में खुद उम्मीदवार बनकर उतरने की तैयारी कर रहे हैं। जन सुराज पार्टी अपने आप को “विकास और पारदर्शिता” के विकल्प के रूप में पेश कर रही है। युवा और शिक्षित मतदाता, जो परंपरागत दलों से असंतुष्ट हैं, इस संदेश को सुनकर आकर्षित हो रहे हैं। मीडिया और सोशल प्लेटफॉर्म पर उनका प्रभाव तेजी से बढ़ा है।

एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों ही अब इस नए खिलाड़ी को नजरअंदाज नहीं कर सकते। यदि जन सुराज 20-30 सीटों पर मजबूत पकड़ बना लेती है, तो यह निर्णायक भूमिका निभा सकती है। इससे यह स्पष्ट है कि बिहार में इस बार चुनाव त्रिकोणीय हो सकता है। इसके साथ ही मतदाताओं के बीच विकल्प की भावना भी मजबूत हो रही है, जो पारंपरिक वोट बैंक को चुनौती दे सकती है।


प्रशांत किशोर – किंगमेकर की भूमिका

बिहार में अक्सर ऐसा हुआ है कि कोई एक दल स्पष्ट बहुमत नहीं पाता और छोटे दल या गठबंधन सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। जन सुराज के उभार के साथ यह संभावना और मजबूत हो गई है कि प्रशांत किशोर किंगमेकर बन सकते हैं। यदि जन सुराज पर्याप्त सीटें जीतती है, तो सत्ता की दिशा तय करने में उनकी भूमिका निर्णायक हो जाएगी।

हालांकि, यह भूमिका आसान नहीं है। विपक्ष और एनडीए दोनों ही उनके समर्थन या विरोध के चलते आलोचना का सामना कर सकते हैं। जनता के बीच यह धारणा भी बन सकती है कि जन सुराज केवल वोट विभाजन का काम कर रही है। इसके बावजूद, यदि प्रशांत किशोर संतुलित और रणनीतिक रूप से गठबंधन का समर्थन करते हैं, तो वे बिहार की राजनीति में निर्णायक ताकत बन सकते हैं।


मुख्यमंत्री बनने की संभावना

मुख्यमंत्री बनने का सवाल फिलहाल अधिक काल्पनिक लगता है। जन सुराज के पास अभी व्यापक संगठन और संसाधन सीमित हैं। मुख्यमंत्री बनने के लिए सिर्फ लोकप्रियता पर्याप्त नहीं है, बल्कि मजबूत जातीय और क्षेत्रीय समीकरण होना आवश्यक है। फिलहाल जन सुराज मुख्य रूप से तीसरे विकल्प के रूप में सक्रिय है और सत्ता पाने की तैयारी में नहीं है।

हालाँकि, यदि गठबंधन के भीतर उनका वोट निर्णायक साबित होता है, तो उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव दिया जा सकता है। यह निर्भर करेगा कि गठबंधन के बड़े दल कितनी दूर तक उन्हें स्वीकार करने को तैयार हैं। लेकिन वर्तमान परिदृश्य में यह संभावना कम ही नजर आती है।


कांग्रेस की भूमिका

महागठबंधन में कांग्रेस की स्थिति कमजोर जरूर है, लेकिन इसका महत्व अब भी बना हुआ है। कांग्रेस पिछले चुनाव में कुछ सीटें जीतकर राजद के साथ गठबंधन का समर्थन करती रही। इस बार भी उसका लक्ष्य महागठबंधन को मजबूत बनाए रखना और तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने में भूमिका निभाना होगा।

यदि महागठबंधन बहुमत प्राप्त करता है, तो कांग्रेस सत्ता साझेदारी में निर्णायक भूमिका निभा सकती है। हालांकि, जन सुराज के उभार से कांग्रेस के पारंपरिक वोटों पर असर पड़ सकता है। खासकर शहरी और युवा मतदाता अब उनके विकल्प को देख रहे हैं। इस परिस्थिति में कांग्रेस को रणनीतिक संतुलन बनाना होगा, ताकि उनका गठबंधन कमजोर न पड़े।


एनडीए और नीतीश का समीकरण

एनडीए में भाजपा और जदयू का तालमेल पहले ही खिंचा हुआ है। भाजपा नीतीश कुमार के नेतृत्व और जातीय समीकरण पर भरोसा करती है, लेकिन उनके विकल्प को लेकर भीतर ही भीतर विचार चल रहे हैं। चुनाव जीतने के बाद भाजपा के लिए बड़ा सवाल यह है कि क्या नीतीश कुमार को फिर से मुख्यमंत्री बनाया जाए या किसी नए चेहरे को आगे लाया जाए।

नीतीश के पक्ष में उनकी राजनीतिक अनुभव और पिछड़े वर्ग के समर्थन की ताकत है, जबकि विरोधियों का मानना है कि उनकी लोकप्रियता में गिरावट आई है। भाजपा के रणनीतिकार अब इस संतुलन पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, ताकि चुनाव के बाद सत्ता का प्रबंधन बिना विवाद के किया जा सके।


तेजस्वी यादव पर प्रभाव

तेजस्वी यादव महागठबंधन का मुख्य चेहरा हैं। 2020 में उन्होंने मजबूत प्रदर्शन किया और राजद को बड़ी पार्टी के रूप में स्थापित किया। लेकिन इस बार जन सुराज की एंट्री ने उनकी स्थिति को चुनौती दी है। युवा वर्ग और मध्यवर्ग के मतदाता, जो तेजस्वी का स्वाभाविक समर्थन माने जाते थे, उनमें से कुछ जन सुराज की ओर खिंच सकते हैं।

यह स्थिति महागठबंधन के लिए जोखिम पैदा करती है। यदि जन सुराज ने कुछ महत्वपूर्ण जिलों में अपनी पकड़ बना ली, तो तेजस्वी का वोट शेयर कम हो सकता है। हालांकि उनके पास यादव-मुस्लिम गठबंधन और सामाजिक समीकरण की मजबूती है, लेकिन नया खिलाड़ी उनके लिए अप्रत्याशित चुनौती प्रस्तुत करता है।


चुनाव की नई दिशा

बिहार का विधानसभा चुनाव अब त्रिकोणीय होने की ओर बढ़ रहा है। एनडीए, इंडिया गठबंधन और जन सुराज तीनों के बीच जंग जारी है। कांग्रेस महागठबंधन का समर्थन करती रहेगी और सत्ता साझेदारी में निर्णायक भूमिका निभा सकती है। एनडीए और नीतीश कुमार के बीच संतुलन भी चुनाव के बाद चुनौतीपूर्ण रहेगा।

जन सुराज की उपस्थिति इस चुनाव को पारंपरिक मुकाबले से आगे ले जा रही है। प्रशांत किशोर किंगमेकर की भूमिका में आ सकते हैं और सत्ता के समीकरण बदल सकते हैं। तेजस्वी यादव की स्थिति कुछ हद तक कमजोर हो सकती है, और भाजपा-नीतीश को भी गठबंधन के बाद अपनी रणनीति पर विचार करना होगा। इस चुनाव का नतीजा केवल सत्ता का नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति में नए विकल्प और युवा नेतृत्व की परीक्षा भी होगा।

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