✍️ लेखक: विजय श्रीवास्तव
(स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक)
भारत में बैंकिंग सेक्टर एक बार फिर बड़े बदलाव के दौर से गुजरने वाला है। केंद्र सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय की प्रक्रिया को दोबारा तेज़ कर दिया है। संकेत साफ हैं—भविष्य में देश के मौजूदा 12 सरकारी बैंक घटकर सिर्फ 4 विशालकाय “सुपर बैंकों” में बदल सकते हैं। सरकार का दावा है कि यह कदम भारत की तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, 5 ट्रिलियन डॉलर लक्ष्य और ग्लोबल लेवल की बैंकिंग क्षमता तैयार करने की दिशा में एक बड़ा सुधार साबित होगा। मगर साथ ही यह कई सवाल भी खड़े करता है—क्या आम जनता को फायदा होगा? कर्मचारियों पर क्या असर पड़ेगा? विलय की जरूरत क्यों पड़ी? और क्या भारत को वाकई इतने बड़े बैंकों की आवश्यकता है? नीचे इन सभी पहलुओं पर विस्तृत, तीखा और असरदार विश्लेषण प्रस्तुत है—
सरकार ने फिर बढ़ाया कदम – मेगा मर्जर पर चर्चाएँ तेज़
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बीते दिनों स्पष्ट किया कि सरकार और RBI के बीच सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के नए दौर के विलय पर बातचीत फिर से शुरू हो चुकी है। सरकार की मंशा है कि भारत में कुछ ऐसे बैंक खड़े किए जाएँ जो—
- पैमाने में बड़े हों
- पूंजी में मजबूत हों
- वैश्विक बैंकिंग मानकों पर खरे उतरें
- तेजी से बढ़ती क्रेडिट जरूरतों को पूरा कर सकें
सरकार यह मान चुकी है कि 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए बड़े बैंक—बिग कैपिटल—बिग क्रेडिट की जरूरत है। इसलिए विलय का रास्ता फिर खोला गया है। कार ने फिर बढ़ाया कदम – मेगा मर्जर पर चर्चाएँ तेज़
क्यों जरूरी हुआ मेगा मर्जर – बढ़ती आर्थिक जरूरतों का दबाव
भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से विस्तार कर रही है, जहां उद्योग, MSME, निजी निवेश, कृषि और बुनियादी ढांचे में पूंजी की भारी मांग है। छोटे बैंक इतनी बड़ी कर्ज जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहे। बड़े बैंक ही उन प्रोजेक्ट्स को वित्त दे सकते हैं, जिनमें हजारों करोड़ की जरूरत होती है। इसके अलावा वैश्विक स्तर पर चीन, अमेरिका और जापान जैसी अर्थव्यवस्थाओं के बैंकों से मुकाबले के लिए भारत को एक नई बैंकिंग ताकत की आवश्यकता है।
देश के 12 सरकारी बैंक – कौन हैं विलय की दौड़ में?
भारत में वर्तमान में 12 सरकारी बैंक हैं:
- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI)
- पंजाब नेशनल बैंक (PNB)
- बैंक ऑफ बड़ौदा
- केनरा बैंक
- यूनियन बैंक ऑफ इंडिया
- बैंक ऑफ इंडिया
- इंडियन बैंक
- सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
- इंडियन ओवरसीज बैंक (IOB)
- यूको बैंक
- पंजाब एंड सिंध बैंक
- बैंक ऑफ महाराष्ट्र
इनमें से कई बैंकों को मर्जर के अगले चरण में शामिल किया जा सकता है, और अंततः सिर्फ चार बड़े बैंक देश के बैंकिंग ढांचे का आधार बनेंगे।
पहले के विलय से मिला आत्मविश्वास – 21 बैंक से घटकर 12 बनने का अनुभव
2019–20 में सरकार ने बड़े पैमाने पर विलय कर 21 बैंकों को घटाकर 12 कर दिया था। उसके बाद बैंकों की शाखाएँ बचीं, कोई छंटनी नहीं हुई और बैंकिंग प्रणाली की आर्थिक स्थिति बेहतर हुई। सरकार इसी सफलता के आधार पर अब दूसरा चरण शुरू कर रही है। यह दावा किया जा रहा है कि पहले के अनुभव ने साबित कर दिया है कि उपयुक्त रणनीति के साथ विलय बैंकिंग सेक्टर को मजबूत बनाता है और कर्ज क्षमता बढ़ाता है। सरकार अब दावा कर रही है कि यह विलय सफल रहा है—इसलिए दूसरा चरण शुरू किया जा रहा है।
विलय के नुकसान – आम जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
सरकार भले ही दावा कर रही हो कि जनता पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन कुछ समस्याएँ पहले भी देखी गई थीं, जिन पर इस बार भी खतरा मंडरा सकता है—मर्जर के दौरान सिस्टम इंटीग्रेशन, IFSC कोड बदलना, पासबुक/चेकबुक बदलना—इन सब में समय लगता है। ग्रामीण इलाकों में यह प्रक्रिया और धीमी हो सकती है। कम बैंक = कम विकल्प, कम प्रतिस्पर्धा का असर सेवाओं पर पड़ेगा। बड़ी शाखाएँ और विशाल बैंक—इसका मतलब ग्राहक संख्या बढ़ेगी, लेकिन क्या सुविधा बढ़ेगी, यह बड़ा सवाल है। कई छोटे बैंक स्थानीय जरूरतों को समझते हैं। मर्जर के बाद यह लचीलापन कम हो सकता है।
आम जनता को क्या लाभ हो सकता है?
बड़े बैंक डूबने की संभावना कम होती है। लोगों की जमा पैसा सुरक्षित रहेगी। तकनीक, ATM, डिजिटल सेवाओं में सुधार- मर्जर के बाद बैंक तकनीक पर अधिक जोर देते हैं, जिससे मजबूत मोबाइल ऐप, UPI, नेट-बैंकिंग, तेज़ कस्टमर सपोर्ट मिल सकता है। बड़ी पूंजी होने का मतलब—सस्ता कर्ज देने की क्षमता बढ़ना। घर, वाहन, एजुकेशन लोन में फायदा मिल सकता है।नेटवर्क बड़ा होने से देश के किसी भी कोने में एक जैसी सुविधा।
कर्मचारियों की स्थिति – लाभ और संभावित हानियां दोनों
वित्त मंत्री ने साफ कहा है कि किसी कर्मचारी की नौकरी नहीं जाएगी, कोई शाखा बंद नहीं होगी और किसी को काम से नहीं निकाला जाएगा। लेकिन पूर्व के मर्जर साबित करते हैं कि कर्मचारियों के लिए कई चुनौतियाँ फिर भी खड़ी होती हैं। स्थानांतरण बढ़ता है, प्रमोशन प्रक्रिया जटिल होती है, वरिष्ठता और ग्रेड के मुद्दे पैदा होते हैं और काम का बोझ कई गुना बढ़ जाता है। वहीं, बड़े बैंक बनने से करियर अवसरों में वृद्धि, आधुनिक प्रशिक्षण, बेहतर डिजिटल कौशल और स्थिर नौकरी का फायदा भी कर्मचारियों को मिलता है। यानी मर्जर कर्मचारियों के लिए एक तरह से अवसर भी है और चुनौती भी।
पिछले मर्जर की समस्याएँ – इस बार क्या बदला है?
1990 और 2000 के दशक के मर्जर के दौरान कई कर्मचारियों ने असंतोष जताया था। कई अधिकारियों के प्रमोशन रोके गए, कई की ग्रेड-पोजिशन पर असर पड़ा। ग्राहक सेवाओं में अव्यवस्था बढ़ी और शाखाओं में कई दिन तक अफरा-तफरी का माहौल रहा।इस बार सरकार का दावा है कि विलय से पहले बैंकिंग इकोसिस्टम को मजबूत किया जा रहा है, ताकि भविष्य में कोई भ्रम या तकनीकी अव्यवस्था न हो। सरकार का उद्देश्य महज विलय नहीं, बल्कि एक स्थायी, सुरक्षित और विश्व-स्तरीय बैंकिंग ढांचा खड़ा करने का है।
भारत 4 विशाल सुपर-बैंकों की ओर, लेकिन चुनौतियाँ कम नहीं
सरकार के इस कदम के पीछे कोई छोटी सोच नहीं है—यह भारत को एक वैश्विक वित्तीय शक्ति बनाने की कोशिश है। यदि सब कुछ सरकार के मुताबिक हुआ तो—
- ग्राहक को बेहतर सेवाएँ
- सस्ते लोन
- सुरक्षित बैंकिंग
- मजबूत अर्थव्यवस्था
लेकिन वही दूसरी ओर—
- सिस्टम बदलाव
- ग्राहक असुविधा
- कर्मचारियों का तनाव
- प्रतिस्पर्धा में कमी
जैसी समस्याएँ भी सामने आ सकती हैं। इन सबके बीच यह साफ है कि भारत में बैंकिंग सेक्टर एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है। आने वाला समय तय करेगा कि यह मर्जर देश को सुपर-बैंक युग में ले जाएगा या फिर चुनौतियों का नया दौर शुरू करेगा।कुल मिलाकर, भारत एक ऐतिहासिक बदलाव के मुहाने पर खड़ा है। अगर सरकार की योजना सफल होती है तो देश में चार बड़े सुपर-बैंक तैयार होंगे, जो वैश्विक स्तर पर भारत की आर्थिक ताकत का नया चेहरा बन सकते हैं। जहाँ जनता को बेहतर सेवाएँ और सस्ते लोन मिलने की संभावना है, वहीं बदलाव के दौर में अस्थायी दिक्कतें भी होंगी। कर्मचारियों को नई व्यवस्था में खुद को ढालना होगा। फिलहाल एक बात स्पष्ट है—भारत की बैंकिंग व्यवस्था नए युग में प्रवेश कर रही है। यह युग अवसरों का भी होगा और चुनौतियों का भी।
