क्या भाजपा का “सुपरस्टार कार्ड” उल्टा पड़ सकता है?
(By Vijay Srivastava / Political Desk)
निजी रिश्तों की आग, जो अब राजनीतिक मैदान तक फैल चुकी है
भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार और भाजपा नेता पवन सिंह इन दिनों सुर्खियों में हैं, लेकिन इस बार वजह उनके गीत नहीं, बल्कि उनकी पत्नी ज्योति सिंह के गंभीर आरोप हैं। ज्योति ने सार्वजनिक तौर पर दावा किया है कि “पवन सिंह ने मुझे गर्भपात की दवाइयाँ दीं, मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना दी।”
उन्होंने कहा —
“जब मैंने विरोध किया, तो उन्होंने मुझे धमकाया। मैंने आत्महत्या की कोशिश भी की थी।” अब यह मामला केवल वैवाहिक कलह नहीं रहा; यह एक सियासी जंग में बदल चुका है। क्योंकि पवन सिंह भाजपा से सक्रिय राजनीति में हैं और बिहार चुनाव से पहले यह प्रकरण पार्टी के लिए असहज स्थिति पैदा कर रहा है।
भाजपा के लिए मुश्किलें — क्या टिकट पर तलवार लटक गई है?
भाजपा के लिए पवन सिंह “लोकप्रिय चेहरा” जरूर हैं, लेकिन यह विवाद पार्टी की “संस्कार और नारी-सम्मान” की छवि को चोट पहुँचा सकता है।
सवाल उठता है —
“क्या भाजपा अब भी ऐसे चेहरे को टिकट देगी, जिस पर महिलाओं के उत्पीड़न का आरोप है?”
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, शीर्ष नेतृत्व इस मामले को “नकारात्मक प्रचार जोखिम” के रूप में देख रहा है। कुछ अंदरूनी चर्चाएँ इस दिशा में हैं कि अगर विवाद और बढ़ा, तो पवन सिंह का टिकट काटा जा सकता है।
राजनीति में छवि सबकुछ होती है, और पवन सिंह की छवि इस वक्त “विवादों की बाढ़” में डूबी है।
ज्योति सिंह ने भी दिखाया इरादा — ‘अगर टिकट मिला तो मैं भी मैदान में उतरूँगी’
लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ज्योति सिंह ने साफ कहा —
“अगर भाजपा पवन सिंह को टिकट देती है, तो मैं सपा या निर्दलीय होकर उनके खिलाफ चुनाव लड़ूँगी।” यह बयान सिर्फ भावनात्मक नहीं, बल्कि राजनीतिक चेतावनी है। अगर ऐसा होता है, तो भाजपा को उस सीट पर दोहरी चुनौती मिलेगी —एक तरफ विपक्षी दलों का हमला और दूसरी तरफ घर से ही बगावत! चुनावी समीकरण में यह सबसे खतरनाक स्थिति होती है — जब विपक्षी नहीं, घर की दीवारें ही विरोध में खड़ी हो जाती हैं।
पवन सिंह का निजी जीवन — ग्लैमर से घिरे विवादों की परतें
पवन सिंह की निजी जिंदगी हमेशा चर्चा में रही है।
- 2015 में उनकी पहली पत्नी नीलम सिंह ने आत्महत्या कर ली थी।
- 2018 में उन्होंने ज्योति सिंह से शादी की।
- 2022 में दोनों के बीच तलाक का मुकदमा दायर हुआ।
- अभिनेत्री अक्षरा सिंह ने भी उन पर अपमानजनक व्यवहार और धमकी देने के आरोप लगाए थे।
इतना ही नहीं, एक कारोबारी ने उन पर धोखाधड़ी के 1.57 करोड़ रुपये हड़पने का आरोप भी लगाया। यानी राजनीति में आने से पहले ही पवन सिंह की साख ‘साफ-सुथरी छवि’ की श्रेणी में नहीं आती और अब यह विवाद उनकी नैतिकता की परीक्षा बन चुका है।
क्या ऐसे चेहरों को राजनीति में जगह मिलनी चाहिए?
यह सवाल अब जनता पूछ रही है —“क्या राजनीति इतनी बेबस हो गई है कि उसे हर मशहूर चेहरा टिकट देना ही पड़े?” भोजपुरी फिल्मों की लोकप्रियता को राजनीतिक पूँजी में बदलने की यह कोशिश भाजपा के लिए जोखिम भरा कदम साबित हो सकता है। भले ही पवन सिंह के लाखों फैन हों, पर चुनाव केवल गानों या ग्लैमर से नहीं जीते जाते। महिलाओं की गरिमा पर जब सवाल उठे, तो जनता भी मौन नहीं रहती।
क्या भाजपा ‘संस्कार’ की बात सिर्फ मंचों से करेगी?
भाजपा लगातार “नारी सम्मान” और “संस्कार” की राजनीति की बात करती है। लेकिन सवाल यही है — “क्या यह संस्कार सिर्फ भाषणों में रह जाएंगे?” अगर पार्टी ऐसे विवादित व्यक्ति को टिकट देती है, तो यह नैतिक विरोधाभास की सबसे बड़ी मिसाल होगी।
सत्ता का दंभ रखने वाली पार्टी को याद रखना चाहिए —
जनता आज सोशल मीडिया के दौर में सब देख रही है, सब समझ रही है।
जनता का मूड — सहानुभूति ज्योति के साथ
सोशल मीडिया पर ट्रेंड साफ दिख रहा है —
लोग ज्योति सिंह के समर्थन में खुलकर बोल रहे हैं।
“#JusticeForJyoti” जैसे हैशटैग चलने लगे हैं।
भोजपुरी समाज की कई महिला कलाकारों ने भी अप्रत्यक्ष रूप से पवन सिंह पर निशाना साधा है। अगर यह सहानुभूति चुनावी माहौल में कायम रही, तो भाजपा को महिला मतों में भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है।
सत्ता से बड़ी होती है सच्चाई
राजनीति में तात्कालिक फायदे के लिए अगर नैतिकता कुर्बान की जाती है, तो वह दल लंबे समय तक टिक नहीं पाता।
पवन सिंह का मामला सिर्फ एक वैवाहिक विवाद नहीं है; यह भारतीय राजनीति के चरित्र का आईना है। “जो व्यक्ति अपने घर की इज्जत नहीं रख सका, क्या वह जनता का सम्मान कर पाएगा?”अगर दल ऐसे चेहरों को मंच देता रहेगा, तो जनता ही आखिरी में फैसला सुनाएगी —
‘लोकप्रियता नहीं, चरित्र ही राजनीति की असली पूँजी है।’