आज हम चर्चा करेंगे विक्रांत मैसी की नई फिल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट’ पर, जो गोधरा कांड और उससे जुड़े विवादों की परतें खोलती है। यह फिल्म न केवल एक मनोरंजन का जरिया है बल्कि 2002 में घटी उस हृदय विदारक घटना का जीवंत चित्रण भी है, जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था।
फिल्म की पृष्ठभूमि और कहानी
27 फरवरी 2002, वह काला दिन जब साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में आग लगाई गई, जिसमें 59 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी। ये लोग अयोध्या से लौट रहे कारसेवक थे। इस घटना ने गुजरात को भयंकर दंगों की आग में झोंक दिया, जो लगभग तीन महीनों तक अहमदाबाद और आसपास के इलाकों में तबाही मचाते रहे।
‘द साबरमती रिपोर्ट’ इसी पृष्ठभूमि पर आधारित है। फिल्म की कहानी एक पत्रकार समर कुमार (विक्रांत मैसी) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो इस घटना की सच्चाई उजागर करने की कोशिश करता है। उसके साथ काम करती हैं मनिका राजपुरोहित (रिद्धि डोगरा), जो एक प्रसिद्ध और प्रभावशाली अंग्रेजी न्यूज एंकर हैं।
कहानी का केंद्र: समर और गोधरा कांड की पड़ताल
समर कुमार एक एंटरटेनमेंट पत्रकार हैं, जिन्हें गोधरा कांड को कवर करने का मौका मिलता है। रिपोर्टिंग के दौरान उन्हें कुछ महत्वपूर्ण सबूत हाथ लगते हैं, जो इस पूरे कांड के पीछे छिपी सच्चाई को उजागर कर सकते हैं। लेकिन जब समर इन सबूतों को अपने चैनल पर दिखाने की कोशिश करता है, तो उसे कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
मनिका, जो अपने चैनल के मालिकों के साथ मिलकर एक झूठी रिपोर्ट प्रसारित करती हैं, समर के खिलाफ खड़ी हो जाती हैं। जब समर इसका विरोध करता है, तो उस पर चोरी का इल्जाम लगाकर उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है। इसके बाद, समर स्वतंत्र रूप से इस मामले की पड़ताल करता है और सत्य की खोज में जुट जाता है।
अभिनय: दमदार प्रदर्शन
विक्रांत मैसी (समर कुमार):
विक्रांत मैसी ने एक जुझारू पत्रकार के रूप में बेहतरीन प्रदर्शन किया है। उनके हावभाव, संवाद अदायगी और गंभीरता ने उनके किरदार को जीवंत बना दिया है। समर का संघर्ष, उसकी ईमानदारी और मीडिया के भीतर की राजनीति के खिलाफ उसकी लड़ाई दर्शकों को झकझोर देती है।
रिद्धि डोगरा (मनिका राजपुरोहित):
रिद्धि ने एक तेज-तर्रार, अंग्रेजी न्यूज एंकर की भूमिका निभाई है, जो अपनी महत्वाकांक्षा के लिए सच्चाई से समझौता करने से नहीं कतराती। उनके किरदार की शीतलता और सख्त रवैया फिल्म में एक नई परत जोड़ता है।
राशि खन्ना:
राशि खन्ना ने एक युवा और सच्चाई की तलाश में जुटी पत्रकार की भूमिका निभाई है। उनके अभिनय में सादगी और ईमानदारी झलकती है।
निर्देशन और लेखन
धीरज सरना ने इस संवेदनशील विषय को पर्दे पर उतारने का साहसिक प्रयास किया है।
- कहानी को सरल रखते हुए उन्होंने इसे यथार्थ के करीब बनाए रखा है।
- फिल्म में कोर्ट के फैसले, मीडिया की भूमिका और समाज में विभाजन के मुद्दों को गहराई से छुआ गया है।
- हालांकि, कुछ जगहों पर कहानी थोड़ी धीमी और खिंची हुई लगती है, लेकिन फिल्म का निर्देशन इसे संभालने में सक्षम है।
मीडिया और समाज पर कटाक्ष
फिल्म में मुख्य रूप से मीडिया की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं।
- कैसे मीडिया सच को दबाकर झूठ को प्रचारित करता है।
- हिंदी पत्रकारों और अंग्रेजी पत्रकारों के बीच का भेदभाव।
- मीडिया के व्यवसायीकरण और सत्ता के साथ उसकी साठगांठ को फिल्म ने खुलकर दिखाया है।
समर का संघर्ष इस बात को सामने लाता है कि आज भी हिंदी पत्रकारों को अपने अंग्रेजी समकक्षों के मुकाबले कमतर आंका जाता है।
तकनीकी पक्ष
सिनेमेटोग्राफी:
गुजरात के माहौल और गोधरा कांड के दृश्य को कैमरे ने बेहतरीन ढंग से कैद किया है। दृश्य इतने प्रभावी हैं कि दर्शक खुद को घटनास्थल पर महसूस करते हैं।
पार्श्व संगीत:
संगीत कहानी के साथ पूरी तरह मेल खाता है। यह रहस्य और भावनात्मक दृश्यों को और भी प्रभावशाली बनाता है।
संपादन:
फिल्म की लंबाई थोड़ी कम की जा सकती थी, खासकर कोर्टरूम और संवाद-heavy दृश्यों को।
फिल्म की ताकत
- प्रासंगिकता: यह फिल्म आज के समय में भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी 2002 में होती।
- अभिनय: विक्रांत मैसी और रिद्धि डोगरा का दमदार प्रदर्शन।
- संदेश: सत्य की खोज और मीडिया की भूमिका पर गहरी चोट।
- निर्देशन: धीरज सरना का साहसिक निर्देशन।
फिल्म की कमजोरियां
- धीमी गति: फिल्म का पहला भाग थोड़ा धीमा है।
- अधिक संवाद: कुछ जगहों पर फिल्म जरूरत से ज्यादा संवाद-heavy लगती है।
- भावनात्मक पहलू की कमी: गोधरा कांड जैसी त्रासदी में और अधिक भावनात्मक जुड़ाव की गुंजाइश थी।
निष्कर्ष
‘द साबरमती रिपोर्ट’ एक ऐसी फिल्म है जो सच्चाई और न्याय के लिए उठने वाले सवालों को प्रकट करती है। यह फिल्म दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है कि सच और झूठ के इस खेल में कौन जीतेगा।
- विक्रांत मैसी का अभिनय,
- मीडिया की सच्चाई,
- और गोधरा कांड का सटीक चित्रण इसे एक बेहतरीन फिल्म बनाते हैं।
फिल्म भले ही पूरी तरह से सच्चाई पर आधारित न हो, लेकिन इसके प्रयासों की सराहना की जानी चाहिए।
रेटिंग: 4.5/5
अगर आप गहरी और संवेदनशील कहानियों में रुचि रखते हैं, तो यह फिल्म जरूर देखें।
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