United Nations(संयुक्त राष्ट्र) की रिपोर्ट का डरावना सच : हर 10 मिनट में एक महिला अपने घर में जान गवां रही है

✍️ लेखक: विजय श्रीवास्तव
(स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक)

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट यह चौंकाने वाला सच सामने लाती है कि महिलाओं और लड़कियों के लिए दुनिया में सबसे असुरक्षित जगह उनका अपना घर है। जिस स्थान को सुरक्षा, विश्वास और आत्मीयता का प्रतीक माना जाता है, वही अब उनके लिए सबसे बड़ा ख़तरा बनता जा रहा है । UN Women और United Nations Office on Drugs and Crime (UNODC) की ताज़ा रिपोर्ट (नाम: Femicides in 2024: Global Estimates of Intimate Partner/Family Member Femicides) में खुलासा हुआ है कि 2024 में लगभग 50,000 महिलाओं और लड़कियों की हत्या उनके पति, प्रेमी या परिवार के सदस्यों — यानी अपने ही करीबियों — ने की थी।
यह आंकड़ा 117 देशों के डेटा पर आधारित है। इसका मतलब है कि प्रतिदिन 137 महिलाएँ (लगभग हर 10 मिनट में एक) — अपने घर या परिवार में — जान गवां रही थीं। कुल मिलाकर, 2024 में दुनियाभर में लगभग 83,000 महिलाएँ व लड़कियाँ जानबूझकर मारी गई थीं — और इनमें से करीब 60 % हत्याएँ उनके जान-पहचान वालों — परिवार या साथी — द्वारा की गईं

आंकड़े बोल रहे हैं — femicide रोका जा सकता है

  • 117 देशों के डेटा से यह निष्कर्ष निकला है कि 137 महिलाओं की रोज हत्या हुई — यानी औसतन एक हर 10 मिनट।
  • पुरुषों के मामले में, हत्या का जोखिम ही अधिक है, लेकिन पुरुषों की हत्या में केवल ≈ 11 % मामलों में अपराधी उनके साथी या परिवार का सदस्य होता है। इसके उलट, महिलाओं की हत्या में करीब 60 % मामलों में अपराधी जान-पहचान वाला ही होता है।
  • रिपोर्ट में सावधानी बरतने की बात कही गई है: हो सकता है कि ये आंकड़े असली स्थिति से भी कम हों — कई देशों में डेटा अधूरा, गुप्त या अचूक है; हिंसा का सही पंजीकरण नहीं हो पाता।

घर — सबसे खतरनाक जगह

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में बताया गया है कि महिलाओं की एक बड़ी संख्या की हत्या उनके जीवनसाथी, प्रेमी, पूर्व-साथी, पिता, भाई या अन्य रिश्तेदार ही करते हैं। यह प्रवृत्ति दर्शाती है कि हिंसा सिर्फ बाहरी दुनिया में नहीं, बल्कि परिवार की चार दीवारों के भीतर गहराई से जड़ें जमा चुकी है।

विशेषज्ञों के अनुसार, इन हत्याओं की जड़ें आम अपराधों से कहीं अधिक गहरी और संरचनात्मक होती हैं। लिंग-आधारित भेदभाव, पितृसत्तात्मक सोच, नियंत्रण की मानसिकता, घरेलू हिंसा, नशा, आर्थिक निर्भरता, सामाजिक मर्यादाओं का भय, झूठी इज़्ज़त और स्त्री-विरोधी परंपराएँ — ये सभी कारक मिलकर महिलाओं के खिलाफ घातक वातावरण तैयार करते हैं। कई मामलों में महिलाएँ वर्षों तक मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक हिंसा सहती रहती हैं, और जब यह दमन चरम पर पहुँचता है तो हत्या जैसी चरम परिस्थिति सामने आती है।

रिपोर्ट यह भी बताती है कि ज्यादातर घटनाओं के पहले घरेलू तनाव, अपमान, धमकियाँ, आर्थिक नियंत्रण, मोबाइल-निगरानी, सामाजिक अलगाव और लगातार मारपीट जैसी चेतावनियों के संकेत मौजूद होते हैं। लेकिन पारिवारिक दबाव, समाज की “क्या कहेंगे” वाली मानसिकता, परिवार टूटने का डर, आर्थिक असहायता और कानून-व्यवस्था पर भरोसे की कमी के कारण महिलाएँ आवाज़ नहीं उठा पातीं। इसलिए विशेषज्ञ मानते हैं कि femicide अचानक होने वाली घटना नहीं है — यह लंबे समय तक चलने वाली हिंसा का चरम रूप है, जिसका अंत महिला की जान पर जाकर होता है।


विश्व में क्षेत्रीय अंतर — कौन सबसे अधिक प्रभावित?

रिपोर्ट क्षेत्र (region) अनुसार femicide-दर भी बताती है:

क्षेत्रप्रति 100,000 महिलाओं पर intimate-partner / family-member femicide दर*
अफ्रीकालगभग 3.0
अमेरिका (उत्तरी + दक्षिण)लगभग 1.5
ओशिनियालगभग 1.4
एशियालगभग 0.7
यूरोपलगभग 0.5

*डेटा intimate-partner या family-member कुल हत्याओं का है — सार्वजनिक हिंसा, मानव तस्करी, युद्ध या अन्य असामाजिक हत्याएँ इसमें शामिल नहीं।

इस तालिका से मालूम होता है कि अफ्रीका में महिलाओं की हत्या की दर सबसे अधिक है, उसके बाद अमेरिका, ओशिनिया आदि आते हैं। एशिया और यूरोप में दर कम है — लेकिन इस आंकड़े को आबादी के लिहाज़ से देखें, तो फिर भी लाखों महिलाएँ प्रतिरोधी हिंसा और हत्या के खतरे में हैं


क्या भारत का डेटा रिपोर्ट में शामिल है? — स्थिति अस्पष्ट

  • रिपोर्ट में भारत जैसे विशिष्ट देशों के लिए femicide-दर नहीं दी गई है — सिर्फ क्षेत्र (एशिया) स्तर का औसत है।
  • एशिया में intimate-partner / family-member femicide दर करीब 0.7 प्रति 100,000 महिलाएं बताई गई है।
  • मतलब यह हुआ कि भारत का femicide-दर (अगर रिपोर्ट में होता भी) बहुत कम या डेटा नहीं मिलने की वजह से शामिल नहीं किया गया।
  • इसलिए, “भारत में हर दिन कितनी महिलाएँ हत्या होती हैं” जैसा कोई विश्वसनीय आँकड़ा इस रिपोर्ट से नहीं लिया जा सकता।

विशेषज्ञों भी कहते हैं कि भारत में डेटा संग्रह और रिपोर्टिंग की बहुत कमी है — कई femicide या घरेलू हिंसा की घटनाओं को सही तरीके से दर्ज नहीं किया जाता।


femicide क्यों बढ़ रही है — कारणों की पड़ताल

रिपोर्ट में और अनुसंधानों में जिन कारणों पर बार-बार प्रकाश डाला गया है, वे हैं:

  • पितृसत्तात्मक सामाजिक संरचनाएँ, लिंग असमानता, महिलाओं का आर्थिक-सामाजिक रूप से निर्भर रहना। महिलाएँ आत्मनिर्भर न हों, उन्हें निर्णय-स्वतंत्रता न हो — इससे हिंसा की संभावनाएं बढ जाती हैं।
  • कंट्रोल, भय, दमन, घरेलू उत्पीड़न, आर्थिक दबाव, मानसिक तनाव — अक्सर हिंसा धीरे-धीरे बढ़ती है, फिर भयंकर रूप ले लेती है। इसके पहले कई चेतावनियाँ होतीं — कॉल, धमकी, आक्रामक व्यवहार, ऑनलाइन उत्पीड़न आदि।
  • कानूनी व सामाजिक सुरक्षा तंत्रों की कमी — कई देश हिंसा, डर, शिकायत, संरक्षण के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं रखते। डेटा का अभाव, रिपोर्टिंग का डर, समाज में शर्म आदि वजह से बहुत से मामलों को दर्ज भी नहीं किया जाता।
  • डेटा व ट्रैकिंग की कमी — कई देशों में femicide का अलग-से रिकॉर्ड नहीं है; घरेलू हिंसा या हत्या को अन्य अपराधों में दर्ज कर लिया जाता है। इससे वास्तविक स्थिति का पता नहीं चलता।

समाधान और आगे की राह — क्या कहा गया है रिपोर्ट में?

रिपोर्ट और विशेषज्ञों ने femicide को रोकने के लिए ये उपाय सुझाए हैं:

  • कानूनी सुधार — femicide को एक विशिष्ट अपराध के रूप में मान्यता देना, दोषियों को सख्त सजाएं, न्याय प्रणाली को संवेदनशील व त्वरित बनाना।
  • सशक्त सामाजिक सुरक्षा व सहायता तंत्र — आश्रय गृह, काउंसलिंग, कानूनी सहायता, सतर्क चेतावनी-प्रणाली, पुलिस-वेलनेस सेन्टर, सुरक्षित आवास, साइबर-सुरक्षा आदि।
  • डेटा संग्रह व पारदर्शिता — हर देश को femicide-डेटा, घरेलू हिंसा रिकॉर्ड, हत्या-डेटा साझा करना चाहिए; नियमित व भरोसेमंद सांख्यिकी होनी चाहिए।
  • सामाजिक जागरूकता और शिक्षा — घर, स्कूल, कार्यस्थल — सभी जगह महिलाओं-महत्व, समानता, सम्मान और लिंग-भेद के खिलाफ शिक्षा; मीडिया व नागरिक समाज का सक्रिय योगदान।
  • पूर्व चेतावनी व हस्तक्षेप — जब किसी रिश्ते या परिवार में हिंसा, धमकी, उत्पीड़न हो रहा हो — तत्काल हस्तक्षेप देना, सुरक्षा और कानूनी मदद देना; ताकि हत्या तक ना पहुँचा जाए।

जब घर ही मौत बन जाए — हमें बदलाव की ज़रूरत है

यूएन की इस ताज़ा रिपोर्ट का संदेश साफ है — महिलाओं के लिए घर अब सुरक्षा का स्थान नहीं है, बल्कि हिंसा और मौत की सबसे बड़ी जगह बन चुकी है। हर 10 मिनट, हर दिन 137 मौतें — यह सिर्फ संख्या नहीं, लाखों परिवारों का दर्द, असंख्य सपनों का अंत है।लेकिन राहत की किरण भी है: यह एक रोकी-जाने योग्य समस्या है। अगर सरकारें, समाज, न्याय-व्यवस्था, और नागरिक मिलकर काम करें — कानून सख्त हों, सुरक्षा व सहायता व्यवस्था मजबूत हो — तो femicide को रोका जा सकता है।वर्तमान में, भले ही हमारे देश (भारत) का femicide-डेटा इस रिपोर्ट में स्पष्ट न हो — लेकिन इस वैश्विक चेतावनी ने हमें झकझोर दिया है। हमें जागना होगा — तभी हम बतायेंगे कि “हमारी आज़ादी, हमारा घर — सुरक्षित है।”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *