क्या सिरप कांड राजनीति की भेंट चढ़ जाएगा? बच्चों की मौत, सत्ता की बयानबाज़ी और सिस्टम की चुप्पी

✍️ लेखक: विजय श्रीवास्तव
(स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक)

सिरप कांड: एक अपराध नहीं, पूरी व्यवस्था पर सवाल

उत्तर प्रदेश का सिरप कांड अब केवल नकली दवा या स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही का मामला नहीं रह गया है। यह कांड उस पूरे सिस्टम की पोल खोलता है, जहां सैकड़ों फर्में, करोड़ों सिरप की बोतलें और वर्षों से चल रहा अवैध कारोबार किसी की नज़र में नहीं आया। सवाल यह नहीं है कि गलती किससे हुई, सवाल यह है कि इतने बड़े घोटाले को जानबूझकर अनदेखा क्यों किया गया। बच्चों की मौत ने इस मामले को नैतिक और मानवीय संकट में बदल दिया है, लेकिन व्यवस्था अब भी उसे प्रशासनिक फाइल मानकर निपटाने की कोशिश में दिखती है।

राजनीति की एंट्री: भाजपा बनाम सपा की नूरा कुश्ती

सिरप कांड सामने आते ही राजनीति हावी हो गई। मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री ने समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव पर सिरप माफियाओं से संबंध होने का आरोप लगाया और तस्वीरें तक जारी कर दीं। वहीं अखिलेश यादव ने पलटवार करते हुए भाजपा नेताओं पर माफियाओं को संरक्षण देने का आरोप लगाया। नतीजा यह हुआ कि बहस माफिया और सिस्टम से हटकर राजनीतिक आरोपों तक सिमट गई। जनता के बीच यह धारणा मज़बूत होती जा रही है कि दोनों पक्ष इस कांड को न्याय की बजाय सियासी हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। जब दोनों तरफ से आरोपों की बौछार हो और नतीजा शून्य हो, तो जनता के मन में एक ही सवाल उठता है—क्या यह सब नूरा कुश्ती है? क्या असली मकसद जांच नहीं, बल्कि राजनीतिक लाभ है?

मुख्यमंत्री की गंभीरता, लेकिन नतीजा शून्य

यह स्पष्ट दिखता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस मामले को लेकर गंभीर हैं। बैठकें हुईं, एजेंसियों को निर्देश दिए गए, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि एक महीने बाद भी नतीजे बेहद निराशाजनक हैं। करीब 124 एफआईआर दर्ज होने के बावजूद केवल 6 गिरफ्तारियां हो सकी हैं। यह आंकड़ा सरकार की मंशा से ज़्यादा उसकी क्षमता और इच्छाशक्ति पर सवाल खड़े करता है। गंभीरता तब मायने रखती है, जब उसका असर परिणामों में दिखे।

शुभम जायसवाल और ढीली कार्रवाई का बड़ा सवाल

इस पूरे घोटाले का अहम किरदार माने जा रहे शुभम जायसवाल का आज तक फरार होना सरकार और पुलिस की कार्यप्रणाली पर सबसे बड़ा प्रश्नचिह्न है। पुलिस मानकर चल रही है कि वह दुबई या किसी अन्य देश में छिपा है, लेकिन उसके खिलाफ कार्रवाई बेहद कमजोर है। सिर्फ 25 हजार रुपये का इनाम यह बताने के लिए काफी है कि या तो प्रशासन दबाव में है या फिर मामला जितना दिखाया जा रहा है, उससे कहीं ज्यादा संवेदनशील है। असम के एक हालिया मामले में थाईलैंड से आरोपियों को दो-तीन दिन में लाना इस तुलना को और तीखा बना देता है।

तो सवाल उठता है—
👉 बच्चों की मौत क्या कम गंभीर अपराध है?
👉 या फिर यहां राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है?

25 हजार का इनाम: मज़ाक या मिलीभगत?

इतने बड़े घोटाले के कथित मास्टरमाइंड पर सिर्फ 25 हजार रुपये का इनाम रखा जाना, प्रशासन की गंभीरता पर सबसे बड़ा प्रश्नचिह्न है। जब करोड़ों की हेराफेरी करने वाले पर इतनी मामूली राशि घोषित की जाती है, तो संदेश साफ जाता है—या तो सरकार दबाव में है, या फिर अनिच्छुक।

जांच एजेंसियां, स्वास्थ्य विभाग और सिस्टम की चुप्पी

एसआईटी, ईडी, आईटी जैसी एजेंसियों की सक्रियता अखबारों की सुर्खियां बन रही है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर बड़े मगरमच्छ अब भी सुरक्षित हैं। स्वास्थ्य विभाग, सीएमओ और ड्रग इंस्पेक्टर इतने बड़े घोटाले के दौरान क्या कर रहे थे, इसका जवाब आज तक नहीं मिला। यह मानना कठिन है कि सैकड़ों फर्मों की जालसाजी और करोड़ों की सप्लाई बिना किसी अंदरूनी मिलीभगत के संभव हो सकती है। यह लापरवाही नहीं, बल्कि संगठित चुप्पी का संकेत देती है ।इतना बड़ा घोटाला और स्वास्थ्य विभाग, सीएमओ, ड्रग इंस्पेक्टर—सब अनजान बने रहे। यह मानना मुश्किल है कि सैकड़ों फर्में, करोड़ों बोतलों की सप्लाई और नकली सिरप का कारोबार चलता रहा, और किसी को भनक तक नहीं लगी।

यह लापरवाही नहीं, बल्कि सिस्टमेटिक फेल्योर का मामला है।

मीडिया बनाम सत्ता: क्या सिरप कांड दबा दिया जाएगा?

इस पूरे मामले में अगर किसी ने ईमानदारी से अपनी भूमिका निभाई है, तो वह है स्थानीय मीडिया, खासकर बनारस के अखबार। पिछले एक महीने से रोज़ नए-नए खुलासे हो रहे हैं—फर्मों के नाम, सप्लाई चैन, प्रशासनिक चूक। चौथा स्तंभ सवाल पूछ रहा है, लेकिन सत्ता और प्रशासन अब भी सुस्ती में हैं। अखबारों में रोज़ छापे, जब्ती और पूछताछ की खबरें आ रही हैं। लेकिन जनता के मन में सवाल है—क्या यह कार्रवाई भी सिर्फ “हेडलाइन मैनेजमेंट” बनकर रह जाएगी? डर यही है कि कहीं यह मामला भी कुछ समय बाद फाइलों में दफन न हो जाए। अगर ऐसा हुआ, तो यह सिर्फ बच्चों की मौत नहीं होगी, बल्कि न्याय और शासन व्यवस्था की सामूहिक हार होगी। अब सवाल यही है कि क्या यह कांड भी राजनीति की भेंट चढ़ जाएगा, या फिर कभी उन मासूम बच्चों को न्याय मिलेगा जिनकी मौत ज़हरीले सिरप ने तय कर दी?

लेखक परिचय : लेखक विगत 25 वर्षों से अधिक समय से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। उन्होंने हिन्दुस्तान, जनवार्ता, स्वतंत्र चेतना सहित अनेक समाचार पत्रों में कार्य करते हुए ज़मीनी पत्रकारिता से लेकर वैचारिक लेखन तक अपनी स्पष्ट पहचान बनाई है। लेखक उस पत्रकारिता के पक्षधर हैं जो सत्ता का अनुगमन नहीं, बल्कि लोकतंत्र में जवाबदेही तय करने का माध्यम बने।

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