पटना हाईकोर्ट ने कांग्रेस को निर्देश दिया — PM की माँ पर बने AI-वीडियो को हटाओ
पटना हाईकोर्ट ने बिहार कांग्रेस द्वारा सोशल-मीडिया पर पोस्ट किये गए एक AI-जनित वीडियो के संबंध में कड़ा रुख अपनाते हुए पार्टी को उसे अपने प्लेटफॉर्म से तत्काल हटाने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि सार्वजनिक-नैतिकता और व्यक्तिगत गरिमा को ध्यान में रखते हुए ऐसी सामग्री स्वीकार्य नहीं है।
यह 30-सेकंड के करीब का क्लिप था जो PM नरेंद्र मोदी और उनकी दिवंगत माता को दर्शाने वाले कथित AI-सृजन का था; विपक्षी तर्क और राजनीतिक कैंपेन के बीच इस वीडियो ने तीखी बहस छेड़ दी। पटना HC ने कहा कि भावनात्मक और संवेदनशील सामग्री का राजनीतिक प्रयोग सीमाओं में रहकर होना चाहिए और निर्देश दिया कि वीडियो हटाया जाए और भविष्य में इस प्रकार के प्रयोग पर रोक के लिए कदम उठाये जाएँ।
राजनीतिक प्रतिक्रिया: भाजपा ने कांग्रेस पर तीखा हमला बोला और कानूनन कार्रवाई की माँग की; कांग्रेस ने कहा कि किसी तरह का अपमानजनक इरादा नहीं था, पर अदालत के आदेश का सम्मान किया जाएगा। कई कानूनी विशेषज्ञों ने कहा कि यह मामला ‘deepfake’ और राजनीतिक-ऑनलाइन कंटेंट के नियमन पर बड़ा उदाहरण बन सकता है।
अमित शाह का कांग्रेस पर हमला: “घुसपैठियों को बचाने वाली यात्रा” का आरोप
गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष की कुछ अभियानों और रैलियों पर तीखा हमला करते हुए कहा कि कांग्रेस-नेतृत्व “घुसपैठियों” के संरक्षण का पक्ष ले रहा है और उसने हालिया यात्रा-आयोजनों को जनता-भड़काने वाला करार दिया। शाह ने विपक्षी नेताओं से स्पष्ट निर्देश और जवाब मांगा।
अमित शाह का निशाना विशेषकर उन जनसभाओं पर था जहाँ प्रवासी/वो लोगों के मुद्दे उठाये गए थे; उन्होंने कहा कि देश की सुरक्षा और संवेदनशीलता पर राजनीतिक लाभ लेना गलत है और विपक्ष को इस पर स्पष्टता देनी चाहिए। भाजपा नेताओं ने अब इस मुद्दे को चुनावी मोर्चे पर प्रमुख रखा है।
प्रतिक्रियाएँ: कांग्रेस ने इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताकर पलटवार किया, जबकि क्षेत्रीय पार्टियों ने इसे स्थानीय तथा चुनावी गणना का हिस्सा बताया। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह बहस आगामी विधानसभाओं के संदर्भ में वोट-बेटिंग की रणनीति का हिस्सा है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के ताज़ा बयानों का राजनीतिक इम्पैक्ट: “भारत किसी देश की हुकुम नहीं मानता”
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने विदेश-नीति और राष्ट्रीय-स्वाभिमान पर जोर देते हुए कहा कि “भारत किसी देश के निर्देशों या डिक्टैट को स्वीकार नहीं करेगा” — उनके बयानों ने विदेश नीति-संवाद और राजनीतिक विमर्श दोनों में तेज़ी ला दी है।
राजनाथ सिंह के यह बयान हाल के अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम और कुछ विदेश-नेताओं के ताज़ा बयानों के संदर्भ में आये—उनका संकेत था कि भारत अपनी राष्ट्रीय नीति-निर्धारण स्वतंत्र रूप से करेगा और किसी बाहरी दबाव को स्वीकार नहीं करेगा।
राजनीतिक प्रभाव: विपक्ष ने कहा कि यह बयान सकारात्मक है और राष्ट्रीय-एकजुटता को बढ़ाता है; पर कुछ आलोचक इसे आक्रामक कूटनीति की संज्ञा दे रहे हैं और सुझाव दे रहे हैं कि संवेदनशील मुद्दों पर संयमित भाषा बेहतर रहती।
केंद्र और राज्य में ‘तेल-बिचौलियों’ से लेकर बांध विवाद तक: महाराष्ट्र-कर्नाटक विवाद का नया मोड़
महाराष्ट्र सरकार ने चेतावनी दी कि यदि कर्नाटक आल्मट्टी बांध की ऊँचाई बढ़ाने की योजना पर आगे बढ़ता है तो वह सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएगा — यह मामला अंतर-राज्यीय पानी प्रबंधन और राजनीतिक झड़प का नया बिंदु बन गया है।
प्रसंग: आल्मट्टी बांध के ऊँचाई-वृद्धि प्रस्ताव का असर महाराष्ट्र के निचले इलाकों के जलप्रवाह व फसल-क्षेत्रों पर पड़ सकता है; इसलिए राज्य सरकार ने कानूनी विकल्प की बात कही और केंद्र-स्तर पर भी समर्थन मांगा।
राजनीतिक प्रभाव: पानी के बंटवारे और बांधों के मुद्दे राज्य-राज्य संबंधों में अक्सर संवेदनशील बन जाते हैं — राजनीतिक दल इसे स्थानीय वोट बैंक और क्षेत्रीय स्वार्थ के हिसाब से इस्तेमाल करते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट तक मामला जाने पर तकनीकी, पर्यावरणीय और मानवीय आयाम भी खुलकर सामने आएँगे।
तेलंगाना-रोज़-पर्ब: केंद्रीय मंत्रियों का आरोप — कांग्रेस ने ‘लिबरेशन-डे’ को नजरअंदाज़ किया?
केंद्रीय नेताओं ने कांग्रेस-शासित तेलंगाना सरकार पर आरोप लगाया कि राज्य ने Telangana Liberation Day को उपेक्षित किया; केंद्रीय मंत्री-स्तरीय बयानबाजी ने इस मामले को राष्ट्रीय स्तर पर उजागर कर दिया।
यूनियन मंत्रियों ने कहा कि Telangana Liberation Day का सम्मान न करना इतिहास और बलिदान के प्रति अनादर होगा; विपक्षी दलों ने इसे राजनीतिक-प्रचार का मुद्दा बताया। घटना ने राज्य-केंद्र संबंधों और क्षेत्रीय राजनीति में नया तनाव पैदा किया है।
इस तरह के ऐतिहासिक-दिनों पर राजनीतिक मुद्राएँ अक्सर क्षेत्रीय पहचान और वोट बैंक राजनीति से जुड़ जाती हैं — मामला संवेदनशील है और आगे राजनीतिक बहस का विषय बनेगा।
तेजस्वी यादव की ‘बिहार अधिकार यात्रा’ और महागठबंधन का तनाव — सीट-साझा के संकेत
बिहार के RJD नेता तेजस्वी यादव की ‘बिहार अधिकार यात्रा’ ने पटना और अन्य जिलों में बड़ी भीड़ जुटाई और उन्होंने मौजूदा सरकार पर भ्रष्टाचार-आरोप लगाए; वहीं महागठबंधन के भीतर सीट-साझा और नेतृत्व को लेकर खिंचाव के सुर भी तेज हुए हैं।
तेजस्वी की यात्रा को कांग्रेस और राहुल गांधी की ‘वोटर-अधिकार’ मुहिम का जबाब बताया जा रहा है — दोनों ही अभियानों का मकसद चुनावी माहौल में जन-आधार मजबूत करना और SIR (Special Intensive Revision) जैसे चुनावी मुद्दों को उठाना है। परंतु भागीदारी और सीट-साझा पर मतभेद भी दिख रहे हैं।
बिहार चुनाव-रणनीति में तेजस्वी की सक्रियता महागठबंधन के लिए लाभकर भी साबित हो सकती है और दबाव-बिंदु भी बना सकती है; नेक-टाइमिंग तथा गठबंधन-रूपरेखा निकट भविष्य में तय होगी।
कांग्रेस की कार्यकारिणी (CWC) की बैठक पटना में 24 सितम्बर को — बिहार पर फोकस
कांग्रेस ने पार्टी-कार्यकारिणी (CWC) की विस्तारित बैठक 24 सितंबर को पटना में करने का निर्णय लिया है — बैठक का स्पष्ट उद्देश्य बिहार विधानसभा चुनाव और स्थानीय चुनाव रणनीतियों पर गहन चर्चा करना बताया गया है।
प्रासंगिकता: पार्टी अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता इसमें भाग लेकर बिहार के हाल-वर्तमान और आगामी चुनावी सरगर्मियों पर अंतिम रुख तय करेंगे; राहुल गांधी और स्थानीय गठबंधन-नेताओं की भागीदारी संभावित है। यह कदम कांग्रेस की बिहार में सियासी स्थिति मजबूत करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
CWC का यह बैठना कांग्रेस के लिए कार्यनीतिक टर्निंग-पॉइंट हो सकता है — सीट-संबन्धी निर्णय और प्रचारयोजना से बिहार का राजनीतिक नक़्शा बदल सकता है।
विपक्ष-संगठन (INDIA ब्लॉक) की सक्रियता: मुंबई-बैठक और रणनीतिक विमर्श
विपक्षी INDIA-ब्लॉक ने हाल के दिनों में मुंबई में खेले गये कुछ बैठकों में रणनीति-समन्वय पर चर्चा की; विपक्षी पार्टियां लोकसभा-फर्श और राज्यों में संयुक्त रणनीति पर विचार कर रही हैं।
मुख्य बिंदु: बैठकें अक्सर चुनावी तालमेल, सीट-साझा और संसदीय कार्यवाही के लिये फ्लोर-लीडर को निर्देश देने के इरादे से होती हैं — हालिया बैठकों में नीतिगत समन्वय और मीडिया-मोर्चे पर एकरूपता पर भी चर्चा दर्ज हुई। पर कुछ पार्टियों की गैर-हाज़िरी ने इस गठजोड़ की एकरूपता पर प्रश्न भी उठाये हैं।
यदि विपक्ष एकीकृत रणनीति बना पाया तो आगामी चुनावों में वह निर्णायक भूमिका निभा सकता है; पर किन्हीं प्रमुख घटकों की दूरी इसकी प्रभावशीलता घटा सकती है।