वाराणसी। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर शुक्रवार को मुलगंधकुटी बौद्ध मंदिर से तथागत के अस्थि अवशेष कलश की शोभायात्रा निकाली गई। अस्थि अवशेष कलश को वियतनाम के उपासक हाथ में लेकर हाथी पर बैठे थे। नेतृत्व महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया के महासचिव भिक्षु पी शिवली थेरो ने किया।
सुबह लगभग पांच बजे बौद्ध भिक्षुओं द्वारा बुद्ध की प्रतिमा एवं अस्थि अवशेष कलश की पूजा कर मंदिर का कपाट उपासकों के दर्शन के लिए खोल दिया गया। सोसायटी के महासचिव भिक्षु पी शिवली थेरो ने बताया कि तीसरे दिन अस्थि अवशेष का दर्शन लगभग 15 हजार बौद्ध अनुयायियों ने किया। इनमें ज्यादातर भारतीय बौद्ध अनुयायी थे। इसके बाद उपासकों में बुनिया का प्रसाद एवं पानी के साथ अस्थि अवशेष के चित्र का कैलेंडर भी वितरित किया गया। इसके बाद बुद्ध के अस्थि अवशेष कलश की शोभायात्रा निकाली गई। इसमें सबसे आगे वियतनामी उपासक एक रथ पर बैठे थे, उनके आगे बैंडबाजा बजाते हुए एक दल चल रहा था। इसके बाद एक वाहन पर तथागत की प्रतिमा थी। इसके पीछे वियतनामी उपासक हाथों में पंचशील झंडा लेकर चल रहे थे। इनके पीछे श्रीलंकाई कलाकार ढोल नगाड़े पर श्रीलंकाई पद्धति में नृत्य करते हुए चल रहे थे। इनके पीछे वियतनामी उपासकों का एक दाल हाथ मे शांति स्तूप का प्रतीक चिन्ह लेकर चल रहा था। इस दौरान वियतनामी उपासक हाथों में पंचशील झंडा व भाला लेकर चल रहे थे। वहीं महिलाएं हाथों में सफेद कमल के फूल का मॉडल लेकर चल रही थी। इनके पीछे हाथी पर विराजमान होकर वियतनामी दल के नेतृत्वकर्ता हाथों में कलश लेकर बैठे थे। उनके पीछे रथ पर वियतनामी उपासक बैठकर लोगों पर फूल छिड़कते हुए चल रहे थे। उनके पीछे स्काउट एंड गाइड के बच्चे बैंड बाजा बजाते हुए चल रहे थे। सबसे पीछे महाबोधि इंटर कालेज के छात्र एवम एनसीसी कैडेट्स हाथों में पंचशील झंडे लेकर चल रहे थे। यह यात्रा बुद्ध मंदिर से निकलकर आकाशवाणी तिराहा, पुरातात्विक संग्रहालय, पुरातात्विक खंडहर होते हुए मूलगंध कुटी बौद्ध मंदिर पर जाकर समाप्त हुई। इस मौके पर विहाराधिपति भिक्षु आर सुमितानंद थेरो, डॉ. प्रवीण श्रीवास्तव, राम धीरज सहित आदि उपस्थित थे।