NAAM (नाम) मूवी का रिव्यू : टाइमपास फिल्म है, जिसे आप शायद कुछ मीम्स और हल्के मनोरंजन के लिए देख सकते हैं

नाम (NAAM) मूवी का रिव्यू

साल 2004 में बनी फिल्म नाम आखिरकार 2024 में रिलीज हुई। इस 20 साल की लंबी देरी ने फिल्म को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए। क्या यह फिल्म वाकई रिलीज होने के काबिल थी, या इसे समय की धूल में ही खो जाने देना चाहिए था? नाम एक मनोवैज्ञानिक थ्रिलर है, जिसे अनीस बज्मी ने डायरेक्ट किया है। फिल्म में अजय देवगन, समीरा रेड्डी, भूमिका चावला और राजपाल यादव जैसे कलाकारों ने अभिनय किया है। लेकिन क्या यह फिल्म दर्शकों को अपनी सीट से बांध पाई, या यह समय की कड़ी परीक्षा में पूरी तरह विफल रही? आइए, इस फिल्म का एक आलोचनात्मक विश्लेषण करते हैं।

कहानी का विश्लेषण

फिल्म की शुरुआत होती है एक गहरी रहस्यात्मक पृष्ठभूमि के साथ, जिसमें अजय देवगन के किरदार पर गोलियां चल रही हैं। वह गिर जाते हैं, लेकिन उनके हाथ में एक चाबी होती है जिसे वह कसकर पकड़े रहते हैं। कहानी एक जबरदस्त थ्रिल का संकेत देती है, लेकिन जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, यह उलझनों और बेतुके मोड़ का शिकार हो जाती है। अजय का किरदार याद्दाश्त खो देता है और अस्पताल की डॉक्टर भूमिका चावला से शादी कर लेता है। कुछ समय बाद दोनों का एक बच्चा भी हो जाता है।

कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब अजय का पुराना अतीत सामने आता है। वह कौन हैं, उनका रहस्य क्या है? फिल्म इसी सवाल के इर्द-गिर्द घूमती है। लेकिन जब दर्शक इन सवालों का जवाब ढूंढने की कोशिश करते हैं, तो उन्हें बेतुके संवाद, अजीब सिचुएशंस और कमजोर स्क्रीनप्ले का सामना करना पड़ता है।

डॉक्टर और मरीज की शादी और फिर बच्चे का इतने जल्दी होना कहानी को अविश्वसनीय बना देता है। समीरा रेड्डी के किरदार का भी कोई ठोस आधार नहीं दिखता। एक पल में वह अजय को पहचानने से इनकार करती हैं, और अगले ही पल उनके बिना जीने की बात करती हैं। यह कहानी की दिशा और गहराई पर सवाल खड़े करता है।

एक्शन और सस्पेंस का कमजोर पक्ष

2004 का समय भारतीय सिनेमा में सस्पेंस और थ्रिल के लिए जाना जाता था। लेकिन नाम में न तो वह सस्पेंस है जो दर्शकों को झकझोर दे और न ही वह एक्शन जो दर्शकों को रोमांचित करे। फिल्म की कहानी में ऐसे कोई खास ट्विस्ट या क्लाइमेक्स नहीं हैं जो दर्शकों को हैरान कर दें। 70 के दशक की फिल्मों में इससे बेहतर सस्पेंस और ड्रामा देखने को मिल चुका है।

कलाकारों का प्रदर्शन

अजय देवगन ने अपने किरदार को जितना हो सके, ईमानदारी से निभाया है। लेकिन कमजोर कहानी और स्क्रीनप्ले उनके अभिनय को ऊंचाई नहीं दे पाते। भूमिका चावला ठीक-ठाक नजर आती हैं, लेकिन उनकी भूमिका सीमित और अधूरी सी लगती है। समीरा रेड्डी की ओवरएक्टिंग फिल्म को और कमजोर बनाती है।

फिल्म की सबसे प्यारी बात है अजय की बेटी का किरदार निभाने वाली श्रिया शर्मा, जो अपने छोटे-छोटे दृश्यों में मासूमियत और स्वाभाविकता लाती हैं। सहायक कलाकार जैसे राहुल देव, शरत सक्सेना और यशपाल शर्मा जैसे अनुभवी कलाकार भी फिल्म में कुछ खास कमाल नहीं कर पाए।

डायरेक्शन और म्यूजिक

अनीस बज्मी को कॉमेडी और मसाला फिल्मों के लिए जाना जाता है, लेकिन इस थ्रिलर में उनका डायरेक्शन औसत दर्जे का है। फिल्म के कई हिस्से अति-नाटकीय और बेतुके लगते हैं। कई बार ऐसा लगता है कि यह फिल्म 2004 में ही पुरानी पड़ चुकी थी।

हिमेश रेशमिया का म्यूजिक 2000 के दशक की याद दिलाता है, लेकिन वह फिल्म के प्लॉट में फिट नहीं बैठता। बैकग्राउंड स्कोर भी कहानी को मजबूत करने में असफल रहता है।

फिल्म की देरी और इसका असर

फिल्म की रिलीज में 20 साल की देरी ने इसे और भी अप्रासंगिक बना दिया है। 2024 के दर्शक अब और ज्यादा परिपक्व और समझदार हो चुके हैं। वह अच्छे कंटेंट और मजबूत कहानियों की अपेक्षा रखते हैं। नाम उस स्तर को छूने में पूरी तरह विफल रहती है।

फिल्म की रिलीज में देरी के कारणों पर भी सवाल उठते हैं। प्रोड्यूसर की मौत, गुणवत्ता पर सवाल, और अन्य विवाद इसके पीछे बताए जाते हैं। लेकिन असली सवाल यह है कि 20 साल बाद इसे रिलीज करने का फैसला क्यों लिया गया? शायद यह फिल्म डिब्बे में ही बेहतर रहती।

क्या यह फिल्म देखने लायक है?

नाम उन दर्शकों के लिए है, जो पुराने दौर की फिल्मों की सादगी और सीमित कहानी का आनंद लेना चाहते हैं। लेकिन आज के आधुनिक कंटेंट और उच्च गुणवत्ता वाले सिनेमा के बीच, यह फिल्म बेहद कमजोर और आउटडेटेड लगती है।

अगर आप हल्के-फुल्के मनोरंजन के लिए कुछ देखना चाहते हैं और पुरानी यादें ताजा करना चाहते हैं, तो आप इसे देख सकते हैं। लेकिन अगर आप एक गहरी और प्रभावशाली कहानी की तलाश में हैं, तो नाम आपको निराश करेगी।

निष्कर्ष

नाम एक ऐसा प्रयास है जो सही समय पर रिलीज होता, तो शायद थोड़ा प्रभाव छोड़ पाता। लेकिन 20 साल की देरी ने इसे केवल अतीत का एक अवशेष बना दिया है। फिल्म की कमजोर कहानी, कमजोर निर्देशन और बेतुके मोड़ इसे दर्शकों से जोड़ने में असफल बनाते हैं।

कुल मिलाकर, नाम एक टाइमपास फिल्म है, जिसे आप शायद कुछ मीम्स और हल्के मनोरंजन के लिए देख सकते हैं। लेकिन इसे गंभीरता से लेने की कोई जरूरत नहीं है। अजय देवगन और अनीस बज्मी जैसे बड़े नाम भी इस फिल्म को डूबने से नहीं बचा पाए।

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